________________
आचार
६४
आचार
बहिनों को देखा। उन्होंने अपनी ज्ञानलब्धि का प्रदर्शन स्कन्दिलाचार्य से सम्मत होने के कारण इसे स्कन्दिल का करने के लिए सिंह का रूप बना लिया। साध्वियों ने अनुयोग कहा गया। एक मान्यता है कि दुष्काल में सिंह को देखा। वे डरकर लौट आई और आचार्य से श्रुत नष्ट नहीं हुआ था। जो विशिष्ट अनुयोगधर साधु बोलीं-'स्थूलभद्र को सिंह खा गया।' भद्रबाहु बोले -- थे, वे कालकवलित हो गये। एकमात्र स्कन्दिलाचार्य 'वह सिंह नहीं है, स्थूलभद्र है।'
ही अनुयोगधर बचे। उन्होंने मथुरा में साधुओं के लिए दूसरे दिन वाचना के समय स्थूलभद्र भद्रबाहु के पुनः अनुयोग का प्रवर्तन किया और इसलिए इसे सामने उपस्थित हुए। भद्रबाहु ने वाचना नहीं दी। माथुरी वाचना कहा गया तथा यह स्कन्दिलाचार्य का स्थूलभद्र ने सोचा, क्या कारण है जिससे मुझे वाचना के अनुयोग कहलाया। योग्य नहीं माना। उन्होंने इस पर ध्यान केन्द्रित किया (जैन परंपरा में चार आगम-वाचनाएं विश्रुत हैंऔर जाना - इसका कारण कल की घटना है। वे १. आचार्य भद्रबाहु की पाटलीपुत्रीय वाचना.. बोले- 'मैं भविष्य में ऐसा नहीं करूंगा।' भद्रबाह वीर निर्वाण दूसरी शताब्दी (आवश्यक चूर्णि) बोले . 'तुम नहीं करोगे, पर दूसरे कर लेंगे।' बहुत
२. आचार्य स्कन्दिल की माथुरी वाचना- वीर प्रार्थना करने पर बड़ी कठिनाई से वाचना देना स्वीकार
निर्वाण नौवीं शताब्दी (नंदी चणि) किया। उन्होंने स्थूलभद्र से कहा -- 'अवशिष्ट चार पूर्व
३. आचार्य नागार्जुन की बल्लभी वाचना - वीर तुम पढ़ो, पर दूसरों को उनकी वाचना नहीं दोगे।'
निर्वाण नौंवी शताब्दी (भद्रेश्वरसूरी कृत स्थूलभद्र के बाद अंतिम चार पूर्व विच्छिन्न हो
कहावली) गए। दसवें पूर्व की अंतिम दो वस्तुएं भी विच्छिन्न हो
४. आचार्य देवद्धिगणी क्षमाश्रमण की वल्लभी गईं । दस पूर्व की परम्परा उनके बाद भी चली।
वाचना-वीर निर्माण दसवीं शताब्दी (समयआचार्य स्कन्दिल : माथरी वाचना
सुंदरगणीकृत सामाचारी शतक)। वर्तमान में बारससंवच्छरिए महंते दुब्भिक्खकाले भत्ता . जो आगम उपलब्ध हैं, वे प्रायः देवद्धिगणी अण्णण्णतो फिडिताणं गहण-गुणणा-ऽणुप्पेहाभावातो सुते
क्षमाश्रमण की वाचना के हैं।) विप्पणठे। पुणो सुभिक्खकाले जाते मधुराए महंते साहु
आचार-शास्त्रविहित आचरण, मोक्ष के लिए समुदए खंदिलायरियप्पमुहसंघेण 'जो जं संभरति' त्ति
किया जाने वाला अनुष्ठान । एवं संघडितं कालियसुतं । जम्हा य एतं मधुराए कतं तम्हा माधुरा बायणा भण्णति । सा य खंदिलायरिय
१. आचार की परिभाषा सम्मय त्ति कातुं तस्संतियो अणुओगो भण्णति । अण्णे
२. आचार के प्रकार भणंति जहा-सुतं ण णट्ठ, तम्मि दुब्भिक्खकाले जे
___* दर्शन के आचार
(द्र. सम्यक्त्व) अण्णे पहाणा अणुओगधरा ते विणट्ठा, एगे खंदिलायरिए
३. ज्ञान के आचार संधरे, तेण मधुराए अणयोगो पूणो साधणं पवत्तितो
४. चारित्र के आचार त्ति माधुरा वायणा भण्णति, तस्संतितो य अणियोगो
५. तप के आचार भण्णति ।
(नन्दीच पृ ९)
६. वीर्य के आचार बारह वर्ष तक दुष्काल रहा । साधु आहार के लिए
७. श्रमण-आचार के स्थान दूर-दूर क्षेत्रों में जाते। समयाभाव के कारण वे सूत्र
* छह व्रत और अर्थ का ग्रहण, परिवर्तन एवं अनुप्रेक्षण नहीं कर
(द्र. महावत) पाते थे, इसलिए सूत्र विनष्ट/विस्मृत हो गये। दुष्काल
* छह काय-संयम
(द्र. अहिंसा)
• अकल्प-वर्जन सम्पन्नता के बाद विशाल साधुसमुदाय मथुरा में एकत्रित हुआ । आचार्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में आगमवाचना
० गृहस्थ-पात्र-वर्जन हुई। जिसको जो याद था, वह संकलित किया गया।
० पर्यक-वर्जन यह मथुरा में होने कारण माथुरी वाचना कहलाई।
। ० गृहनिषद्या-वर्जन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org