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अवधिमरण
मति श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में चार बातों में साधर्म्य है
काल -- एक जीव की अपेक्षा से जितना काल मति और श्रुत ज्ञान का है उतना ही काल अवधिज्ञान का है । विपर्यय - मिथ्यात्व का उदय होने पर मति और श्रुतज्ञान अज्ञान में बदल जाते हैं, वैसे ही अवधिज्ञान विभंगज्ञान में बदल जाता है।
स्वामित्व -मति और श्रुत ज्ञान का स्वामी ही अवधि का स्वामी होता है ।
लाभ - किसी को कभी तीनों ज्ञान एक साथ प्राप्त हो जाते हैं ।
अवधिमरण - (द्र. मरण)
अवमान प्रमाण जिससे लम्बाई, चौड़ाई और गहराई का नाप किया जाए । (द्र. मानोन्मान) अवसर्पिणी -- १. काल चक्र का एक विभाग, जिसमें पदार्थों की गुणवत्ता का क्रमशः ह्रास होता है । २. ह्रासकाल - - सुख से दुःख की ओर अग्रसर होने वाला काल । (द्र. काल ) - किसी निश्चित प्रमाण के आधार पर वस्तु का निश्चयात्मक अवबोध ।
अवाय
(द्र आभिनिबोधिक ज्ञान ) अविरत सम्यग्दृष्टि जो सम्यग्दृष्टि व्रती नहीं होता, उसकी आत्मविशुद्धि | चतुर्थ गुणस्थान । (द्र. गुणस्थान) अशरण अनुप्रेक्षा- दूसरों में अपनी अत्राणता और अशरणता का अनुचितन । (द्र. अनुप्रेक्षा ) अशीच अनुप्रेक्षा - शरीर की अशुचिता का अनुचिन्तन | (द्र. अनुप्रेक्षा) अश्रुतनिश्रित मति - (द्र आभिनिबोधिक ज्ञान )
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अष्टांगनिमित्त
अष्टांगनिमित्त-आठ अंग वाला निमित्तशास्त्र ।
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१. निमित्त का निर्वचन २. निमित्त के आठ अंग
३. सूत्र आदि उनतीस भेद ४. अंगनिमित्त - अंगविद्या
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अंगस्फुरण के परिणाम
५. स्वर निमित्त
६. लक्षण निमित्त
● लक्षणों के फल
७. स्वप्न निमित्त
• स्वप्नों के फल
० स्वप्न आने के कारण
८. छिन्न निमित्त
९. भौम निमित्त १०. अंतरिक्ष निमित्त
१. निमित्त का निर्वाचन
इं दिए हिंदित्थे हि समाहाणं च अप्पणो । नाणं पवत्तए जम्हा, निमित्तं तेण आहियं ॥ (पिनिवृप १२१ ) निमित्तशास्त्र का अर्थ है - इन्द्रियों और इन्द्रियविषयों के माध्यम से अतीत, वर्तमान और अनागत संबंधी शुभ-अशुभ का प्रतिपादक ग्रन्थ । २. निमित्त के आठ अंग
अंगं सरो लक्खणं च वंजणं सुविणो तहा । छिन्नं भोमंतलिक्खा य, एए अट्ठ वियाहिया ॥ ( पिनिवृ प १२१ )
आठ अंग ये हैं
१. अंग - शारीरिक अवयवों के स्फुरण अथवा स्पन्दन के आधार पर शुभ-अशुभ फल की उद्भावना करने वाला निमित्त शास्त्र ।
२. स्वर - जीव और अजीव से संबद्ध स्वरों के फल का प्रतिपादक शास्त्र ।
३. लक्षण - लांछन आदि लक्षणों का व्युत्पादक
शास्त्र ।
४. व्यंजन-मष, तिल आदि व्यञ्जनों के आधार पर शुभ-अशुभ फल का उपदर्शक शास्त्र ।
५. स्वप्न - स्वप्न के फल का प्ररूपक शास्त्र ।
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