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सिबमह अभिधानराजेन्द्रः।
सिवभह जनो
छत्रं अब्बत्तरसं. सद्दाउलयंति तुरियसण । धम्माओ धरणलाभो, तत्तो कामो तो य संसारो। तं चेव य पच्छितं, बालोयइ बहुजणाण पुरो ॥ ३५॥ धम्मस्स अजण ता, मूलाउ च्चिय दढमजुत्तं ॥६॥
अध्यत्तस्स अगीय-स्स तस्स श्रासेवगो य तस्सेवी।। इय ते उवहासपरे, दछु जक्खो फुरंतगुरुकावो ।
इत्तो दस पालोयग-गुणा इमे हुंति नायव्वा ॥३६॥ उध्याडिय सियफरसु, पहाविमो तेसि हणणत्थं ॥ १०॥ । जाइकुलविणय उवसम-इंदियजयनाणदंसणसमग्गा । तयशु भयखाललोयण तरीलयतारा पकंपिरमरीरा। श्रणणुत्ता वि अमाई, चरणजुया लोयगा भणिया ॥ ६६ ॥ लग्गा मुणिचलणसुं, भगिरा "तं अम्ह सरणं" ति ॥२१॥ जाइजुप्रो पारणं, न कुणइ असुह कयं तु श्राजोए । ते वदछु साहुसरणे, जाखो जाओ पसंतमन्नुभरो। कुलसंपन्ना सम्म, पनिछत्तं घहइ गुरुदिन्नं ॥ ३८॥ पारियउस्मग्गेणं, अह मुणिणा ते इमं बुता ॥ १२॥ नागी किच्चाकिच्चं, जागइ सद्दहद दसगी साहि। (भइत्यादि धम्म' शब्द चतुर्थभाग २६६० पृष्ठे उक्तम् ।)
चरणी तं पडिवजइ, ससपया हुति पयडत्था ॥३६॥ जं पिदु धणभोगाई, भणियं भवकारणं तमवि इत्थ ।
मायारव माहारच, वक्हारुव्यीलए पकुञ्ची य । नेय किलिटुसत्ता-ण न उण इयराण जंभणियं ॥ १७॥
अपरिस्सायी निजव, अवायदंसी गुरू भगिनो ॥४०॥ सा काऽवि कला मायं-ति नियम जामिण परमत्थं ।
नाणायाराजुओ, आयास्य सीसकहियमवगई। महायंति बहसपण चि, छिप्पंति न बिंदुणा चव ॥ १८॥
धारतो आहारब, बबहारो पंचहा इणमा ॥४२॥ सुश्चइ य भरवसगरा-दणो इदं सुचिरभुतवरमोगा।
पागमसुयप्राणाधा-रणा य जीयं च हाइ ववहारो। हाउ अकिलिटूममा, लोयग्गठियं पयं पत्ता ॥ १६ ॥ केालमणा हि च उदस,दमनवयुब्बी य पढमो स्थ ॥ ४२ ॥ इय सोउ पडिबुद्धा, पुणो पुणो स्वामिउं तमवराह । मायारपकमाई, सव्व सेस सुयं विणिन्टुिं । सस्स मुणिस्स समीय, ते दो वि वयं पयजति ॥ २०॥
देसंतरट्टियाणं गूढपयालोयगा आणा ॥१३॥ मुणिय जइजुम्गकिरिया. गुरुमूले पडियबहुयसुत्तत्था ।
गीयत्या पुब्बि, अवधारिय धारगे तईि दिते । सुचिरं उग्गविहारा, खंतिपहाणा तवंति तवं ॥ २१ ॥
पायच्छित्त जीयं, रूढं वा जं जहिं गच्छे ॥४४॥ भर असुहकम्मवसो,सिरिनो सिढिलेइ चरणकरणभरं ।
लज्जाइनियनं, अवलज्जं कुणइ सो उ उब्बीलो। धरस मणे जाइमयं, न कुणइ विणयं गुरुसु पि ॥ २२ ॥
गरुयस्स बि पावस्स उ, सुद्धिसमन्थी पकुब्बी य॥ ४५ ॥ तो सिवभद्दो सिरियं, भणइ भो भद्द ! चरणकरणम्मि ।
अपपरिसाविगभीरो, निजबगो दुश्बलस्स निम्बद्दगो। भवसयसहस्सदुलहे.खणं पि किद्द होसि सिढिलमणा?।२३।
नरगाइदुक्खदेसी, अवाबदसी ससाणं ॥ ४६॥ गुरुविण परो निच्नं, मणं पिमा कुगासु जाइमयमवं ।
श्रवियजं जाइमयाईहिं, दुहिनो परिभमइ भवगद्दणे ॥२४॥ सालुद्धरणनिमित्तं, खित्तम्मी सत्त जोयगासयाई। उक्तं च
काल बारस बाला-गीयस्थगवसणं कुज्जा ॥४७॥ आइकुलरूपवलसुय-तवलाभिस्सरिय अट्टमयपत्तो।
जमेएयाई चिय बंधइ, असुहाई बहुं च संसारे ॥ २५ ॥
नासेइ अगायत्थो, चउरंगं सब्बलोयसारंगं । तो भद्दनिय दासं, एयं गीयत्थसुगुरुमूलम्मि ।
नटुम्मि य चउरंग, नहु सुलह होउ चउरंगं ॥४८॥ तं भालायसु सम्म, नाउं भालोयगाइविहि ॥२६॥
तद्यथापडिसेवा पडिसेवग-दासगुणा गुरुगुग्गा य इह नेया।।
अक्वडियचारित्तो, वयगहणाओ य जो य गीयाथो। सम्मविमोही गुग्णा, सम्ममणालोयो सिक्खा ॥२७॥
नस्स सगासे दसण, वयगहणं साहिगहणं च ॥ ४६॥ तह पडिसवादप्प-प्पमायणाभांगसहसकार य ।
एयविहगुरुपासे, व(ल) जागारवभयाइ मात्तणं । पाउरावाइसकिय-भयप्पोसा य वीमसा ॥२८॥
सव्वं पि भावसलं, उद्धरियव्वं जो भणियं ॥ ५० ॥ घग्गगामाई दापो, इह कंदप्पा उ भन्नइ पमाना।
जह पाला जपनो, कज्जमकजं च उज्जा भणः । यम्ाग्यमगाभागा, महमाकारा अकम्हति ॥२६॥
सं तह पालोबजा, मायामयविप्यमुको उ ॥२१॥ छुहतगहवाहिन्या , जे मवह श्राउग भव एमा।
दारंदब्बाइअलम पुगा, च उठिवहा श्रावई हाइ॥ ३० ॥
लहुयाल्हाईजणणं, अपपरनिवित्तिअजब सोही । सकिय मा कम्हा मा-इमंकि मीहमाईण च भयं । दुकरकरणं अट्ठउ , मिस्सलत्तं च सोहिगुणा ॥ ५३॥ कोहाइा पासा, वीममा सहमाईण ॥ ३१ ॥
बालोयणा परिणो , सम्म संपटिओ गुरुसगासे।
जह अंतरावि काल , करिज अाराहगो तह वि ॥३॥ "आकंपत्ता अगुमाग इत्ता", जे दिटुं वायरं व सुहुमं वा। प्रागंतुं गुरुमूले , जो पुरम पयजेइ अत्तमो दोस। छन्नं सद्दाउलय, बहुजग्गअव्वत्त तस्सेवी ॥ ३२॥
सो जइ न जाइ मोक्खं , अवस्सममरत्तणं लहइ ॥ ५४॥ इय पसिबगदोसा, आकपिय तस्थ भत्तिमाईहिं ।
जो पुण इय नाऊण वि, सम्मं न कहेड अत्तण सल्ले । गुरुवराई लया-गुमाणातहय पालोए ॥३३॥ चोएयब्बो तो सो, निसीहणिएहि नापहि ॥ ५५ ॥ जं दिटुंति परणं, बालोयइ वायरं ति नहु सुहुमं ।
जड कम्सइ नरवाणो , एगो पासो समग्गगुणकलियो। श्रह सुहमं ालायइ, विस्संमत्थं न उगा थूलं ॥ ३४ ॥ तस्स पभावण निव-स्स बट्टए सब्यसंपत्ती ॥ ५६ ॥
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