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1ctout 2 अभिधानराजेन्द्रः ।
सुरिंद
सुरिंद- सुरेन्द्र पुं० सुद्ध राजन्ते इति सुरास्तेषामिन्द्रः'प्रभुः सुरेन्द्रः सुराणां देवानां वा इन्द्रः सुरेन्द्रः । शक्रे, उपा० २ अ० । ति० | स० । द्वात्रिंशत् सुरेन्द्राः । प्रश्न० ५ संव० द्वार । रिन्ददत्त-सुरेन्द्रदत्त पुं० । इन्द्रपुरनगरराजस्येन्द्रदत्तस्य स्वामात्यसुताकुक्षिसंभूते पुत्रे, आ० म० १ ० | मथुरामाताया निर्वृत्ते स्वयंवरवरके, ती०८ कल्प ।
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दयायां सुरेन्द्रदत्तचरितनिदर्शनमाह"पांडेय, इंसिजीवदास विचा किंपि जोहरचरियं भणामि संवेगरसभरिये ॥ १ ॥ अस्थिपुरी, जन्थ जो विमखसीलदुलियो । कलिओ विश्वभरें, न कयावि नियइ परदारं ॥ २ ॥ अमरु अमरचंद, सुहास तर असि नरनाहो । वरलावनमणहरा, जसोहरा तस्स पाणपिया ॥ ३ ॥ तागवितोस, सुदिदो सुख सुरिं प परमेस गुतमेई ने वय याचि वारकरो ॥ ४ ॥ निय संगम उज्जीविय, मयणासारयस संकसमवयणा । तरस य नीलुप्पलदल - नयणा नयणावली भज्जा ॥ ५ ॥ अभिरं पुने संकमिष अमरचंद नियो । पडियो कयन्नो, समग्रत्तं असम सुमणतं ॥ ६ ॥ महिर बुज्नकरो, पयडियकमलो यहणियरिउतिमिरो । रियो वि महसुदियं ॥ ७ ॥ अह अदि रम्रो सारवियानामिया दासी ।
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पलले कडियो समागध धम्म ति ॥ ८ ॥ ततो चिंते निवो, अधिरत्तं श्रहह सब्वभावाणं । ही तुच्छया भवस्स य ह हा चलत्तं तरुण्या ॥ १ ॥ दिवसनिसा घडिमालं, श्राउयसलिलं जणस्स वित्तूं। चंदाच्चबद्दल्ला, कालरहटुं भमाईति ॥ १० ॥ जीवियजलंमि खीणे, सरीरसस्संमि परिसुसंतंमि । को विनस्थिउट, तद्दवि जो पावमायर६ ॥ ११ ॥ तो कि मी रंगभंगुरतराए । निलाइ नरपुरसर सरसीद ॥ १२ ॥ गुदरकुमरं गुण कुलहरं ठाचिकण निरखे। पुण्वपुरिरचिन्नं, सामनं अयुवरामिति ॥ १३ ॥ तो लिट्टो दवा नियमिष्याओ निषेण सा आद खंभे रोय तं कुल-सु नाद न करेमि विग्धमहं ॥ १४ ॥ किंतु अपि गहि सहेच पण्यम उसेगा। चिट्ठा पच्छा जुरहा, फुडमुडवाणो विणा कह णु ॥ १५ ॥ तो चिंता नरनाहो, श्रहो अहो मज्झ उवरि देवीए । अनिविडो पडिबंधो, श्रहो अहो विरद्दभीरुत्तं ॥ १६ ॥ इत्तरं मदिर समय दाहिणकरेण । कालनिवेश नियम १७ ॥ लधुं पसिद्धमुदयं, पयावपसरं कमेण वद्दित्ता | उज्जोविता भुवणं, संप श्रत्थमह दिगनाहो ॥ १८ ॥
सोडवित नदी, दान को नही इतिय दाउ विसी, पददिवलं सहद्द सूरो वि ॥ १६ ॥ संझाकियां तो का उ ठाउ मत्था मंडवंमि खं । नयाली समलं किमि पत्तो रद्दगिहांने ॥ २० ॥ संसारसकनिकष
પૂર્ણ
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सुरिन्द
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सियविमुहरसरनो दूरं श्रसरियनिस्स ॥ २९ ॥ सुनो निवु सि उकड मया नयावली समुह । ग्वा वासहाओ | २२ ॥ नियोकि एसानिया मदभाषियरद्दभीरू नू मरिदिति वारेमि ॥ २३ ॥ तय अपुट्टिमेई, इ जाइ जा नरवई गहियश्रासी । पासागपाल ता-च खुजश्रो ती उट्ठविभो ॥ २४ ॥ अह ते दोवि पमन्ते, करालकरवालघाय पायाले । जा खिबिद्दी कोयवसा, निवई इय चिंतर ताय ॥ २५ ॥ उम्मडरिडर्सडिय-कर डिडकरटदलदुलो वियलिय सीले इमे-सु एस कह वह मह खग्गो ॥ २६ ॥ अव किमिमी चिंता- पत्थुयत्थस्स अणगुरुवाए । इय चलिय विलियचित्तो, सिज्जाठाएं निवो पत्तो ॥ २७ ॥ तिर लणिज्जगओ, अहो महेला अनामिया बाही। विसकदली अभूमा, विसया भोयरोग पिता ॥ २८ ॥ बी अकंपरा तह. अणरिंग चुडली अवेयणा मुच्छा । निवड निवडमलो, अकारणो तह य मच्युति ॥ २४ ॥ इय जा चिंते इमो, ता देवी तत्थ श्रागया सखियं । गंभीरयाइ नहु किं-पि जंपियं नरवरेण तया ॥ ३० ॥ इत्तो समाहयाई प्रभायतू गइ किंकरगणेण । कालमिवेगपुर - गहियसद्देग इय पढियं ॥ ३१ ॥ सावधारयणी, विमुकगुरुतिमिरचिदुपभारा। दाडं जलंजलि पिय, परलो गगयस्स सूरस्स ॥ ३२ ॥ तो काउ गोलकिच्चं अत्थाणसद्दाइ श्रागश्री राया । पण य मंतिसामंतसिसिम्पादयमुदे । ३३ ।। कदिओ नियभिपाओ, निवेण मिलनमामंतीण | भालयलमिलियकरको -रगेहिं तेहिं पि विनचियं ॥ ३४ ॥ देव ! न श्रज वि जायइ, कवयहरो जाब गुणहरो कुमरो । ताव सयं त्रिय सामी, प्याउ पयाउ पालेउ ।। ३५ ।। भराइ नियो मंतिवर, किं श्रम्ह कुले समा गए पलिए । कोवि ठिश्रो गिवासे, भांति ते देव ! नहु एवं ॥ ३६ ॥ इय सह मंतीहि नियो विविद्दालावेहि तं दिशं गमिउं । सुदो वीय विरामसम नियर सुमि ॥ ३७॥ जह सत्तभूमिमंदिर - उचरिं सीहासांमि उबविट्ठो । पडिकूल भासिणी, अंबार पाडिओ हिट्ठा ॥ ३८ ॥ निवडतो पत्तो इं, भूमीश्रां सत्त तह य अंबावि । उडिय कई पि मंदिर- गिरिसिहरं पुरावि श्ररूढो ॥ ३६ ॥ अह गयनिहो राया, चिंता आवायदारुवियागो । परिणामसुहो सुमियो एसो कि भाषि नहु जाये ॥ ४० ॥ अत्रान्तरे पठितं प्राधानिककालनिवेदनपतितोऽपि दैवयोगात् पुनरुत्पातं क्षणेन किल लभते । कन्दुक सहसो न भवति चिरकालविनिपातः अह कयपयभायकिरुवो, ना अत्थामि उवविस राया । बहुपरिपरिपरिया, जसोहराता हाई पत्ता ॥ ४२ ॥ अम्बुट्टिया निषेयं निवेखिया आस अहमहंते । पुच्छर बच्छ ! कुसलं, स भरा बापसारण ॥ ४३ ॥ चितइ य नित्रों मज्झ, वयगहणं कहणु मन्निही अंबा | अधि अधिक दोबा
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