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मरण अभिधानराजेन्द्रः।
मरण आयरियउवज्झाए, पव्वयणे सब्बसंघे य ॥ १६ ॥ ते सुविसुद्धचरित्ता, करंति दुक्खक्खयं साहू ।। ५६ ॥ एएमु भत्तिजुत्ता, पूयंता अहरहं अणममणा । पुबमकारियजोगो, समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि । सम्मत्तमणुसरंता, परित्तसंसारिया हुंति ॥२०॥ न भवइ परीसहसहो, विसयसुहपराइओ जीवो ॥५७।। सुविहिय इमं पइम्मं, असदहंतेहि ऽणेगजीवहिं ।
तं एवं जाणतो, महंतरं लाहगं सुविहिए। बालमरणाणि तीए,मयाइँ काले अणंताई ॥ २१॥
दसणचरित्तसुद्धी, निस्सल्लो विहर तं धीर ! ।। ५७ ।। एगं पंडियमरणं, मरिऊण पुणो बहूणि मरणाणि ।
इत्थ पुण भावणाओ, पंच इमा हुंति संकिलिट्ठाओ। न मरंति अप्पमत्ता, चरित्तमाराहियं जेहिं ॥ २२॥
आराहिंत सुविहिया, जा निचं वञ्जिणिजाओ ॥ ५ ॥ दुविहम्मि अहक्खाए, सुसंबुडा पुव्वसंगो मुक्का ।
कंदप्पा देवकिब्बिस-अभियोगा आसुरी य संमोहा । जे उ चयंति सरीरं, पंडियमरणं मयं तेहिं ॥ २३॥
एयाओं संकिलिट्ठा, असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा ॥६०॥ एयं पंडियमरणं, जे धीरा उवगया उवाएणं ।
कंदप्पा कोकुइया, दवसीलो निच्च हासणकहाश्रो । तस्स उवाए उ इमा, परिकम्म विहीउ जुजीया ॥२४॥
विम्हावितो उ परं, कंदप्पं भावणं कुणइ ॥ ६१ ॥ जे कुम्म(केस)संखताडण-मारुअजिअगगणपंकयतरूणं ।
नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूणं ।
माई अवमवाई, किबिसियं भावणं कुणइ ॥६२॥ सरिकप्पासुयकप्पिय-आहारविहारचिट्ठागा ॥ २५ ॥
मंताऽभियोगं कोउग, भूईकम्मं च जो जणे कुणइ । निच्चं तिदंडविरया, तिगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिस्सल्ला।
सायरसइड्डिहेडं, अभियोगं भावणं कुणइ ॥ ६३ ॥ तिविहेण अप्पमत्ता,जगजीवदयावरा समणा ॥ २६ ॥
अणुवद्धरोसवुग्गह-संपत्त तहा निमित्तपडिसेवी । (अत्रत्या वक्तव्यता 'आराहग' शब्दे द्वितीयभागे ३७७ | पृष्ठे उक्ला तत पवावसेया।)
एएहि कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ ॥ ६४ ।। फासेहिं ति चरितं, सव्वं सुहसीलयं पजहिऊणं । उम्मग्गदेसणा णा-ण-दूसणा मग्गविप्पणासो अ। घोरं परीसहचर्मु, अहियासिंतो धिइबलेणं ।। ४५ ।। मोहेण मोहयंत-सि भावणं जाण संमोह ॥ ६५ ॥ सद्दे रूवे गंधे, रसे य फासे य निग्घिणधिईए ।
एयाउ पंच वजिय, इणमो छट्ठाइँ विहर तं धीर ।। सव्वेसु कसाएसु य, निहंतु परमोसया होहि ॥ ४६॥
पंचसमिओ तिगुत्तो, निस्संगो सव्वसंगहि ॥ ६६ ॥ चइऊण कसाए ई-दिए य सव्वे य गारवे हेतुं। एयाएँ भावणाए, विहरविशुद्धाइ दीहकालम्मि । तो मलियरागदोसो, करेह आराहणासुद्धिं ॥४७॥ ।
काऊण अंतसुद्धि, दंसणनाणे चरित्ते य ॥६७।। दंसणनाणचरित्ते, पव्वज्जाईसु जो अईयारो।। पंचविहं जे सुद्धिं, पंचविहविवेगसंजुयमकाउं । तं सव्वं आलोयहि, निरवसेसं पणिहियप्पा ॥४८॥ इह उवणमंति मरणं, ते उ समाहिं न पाविति ॥६॥ जह कंटएण विद्धो, सव्वंगे वेयणद्दिओ होइ ।
पंचविहं जे सुद्धि, पत्ता निखिलेण निच्छियमईया । तह चेव उद्धियम्मि उ, नीसल्लो निव्वत्रो होइ॥४६॥ पंचविहं च विवेगं, ते हु समाहिं परं पत्ता ॥६६॥ एवमणुद्धियदोसो, माइल्लो तेण दुक्खिो होइ । लहिऊणं संसारे, सुदुल्लहं कहं वि माणुसं जम्मं । सो चेव चत्तदोसो, सुविसुद्धो निव्वओ होइ ॥ ५० ॥ न लहंति मरणदुलहं, जीवा धम्मं जिणक्खायं ॥७॥ रागहोसाऽभिहया, ससल्लमरणं मरंति जे मूढा । किच्छाहि पावियम्मि वि, सामने कम्मसत्तिोसना । ते दुक्खसल्लबहुला, भमंति संसारकंतारे ॥ ५१ ।। सीयंति सायदुलहा, पंकासन्नो जहा नागो ॥ ७१ ॥ जे पुण तिगारवजढा, नीसल्ला दंसणे चरित्ते य ।। जह कागणीइ हेउं, मणिरयणाणं तु हारए कोडिं । विहरंति मुक्कसंगा, खवंति ते सव्वदुक्खाई ५२॥ तह सिद्धसुहपरुक्खा, अबुहा र(स)जंति कामसुं ॥७२॥ सुचरमवि संकिलिहूं, विहरितं माणसंवरविहीणं । चोरो रक्खसपहओ, अत्थऽथी हणइ पंथियं मूढो । नाणी संवर जुत्तो, जिणइ अहोरत्तमित्तेणं ॥ ५३ ॥ इय लिंगी सुहरक्खस-पहओ विसयाउरो धम्मं ॥७३॥ जं निजरेइ कम्मं, असंवुडो सुबहुणा वि कालेणं । तेसु वि अलद्धपसरा, अवियाहा दुक्खिया गयमईया । तं संवुडो तिगुत्तो, खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ ५४॥ समुर्विति मरणकाले, पगामभयभेरवं गरगं ॥ ७४ ॥ सुबहुस्सुयाऽवि संता, जे मूढा सीलसंजमगुणेहिं । धम्मो न कओ साहू, न जेमिओ न नियंसियं सएहं । न करंति भावसुद्धिं, ते दुक्खनिभेलणा हुँति ॥५॥ इपिंह परंपरासु-त्ति य नेवय पत्ताइँ सुक्खाई ॥ ७५ ॥ जे पुण सुयसंपन्ना, चरित्तदोसेहि नोवलिप्पंति । साहूणं नोवकयं, परलोअच्छेयसंजमो न करो।
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