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(१९८३) विणयंधर अभिधानराजेन्द्र।।
विणयंधर यि पउरं फरसागरा-हि ताडिया धाडिया नरिंदेण। प्रहभणइ गुरू निवरह, पासी नयम्मि हथिसीसम्मि। किवणेण मग्गणा इव, पउरा पत्ता सगेहेसु ॥ ३० ॥ राया वियारधवलो , धवलजसो धंवलियदियंतो ।। ५४ ॥ तो विणयंधरभज्जा, ताओ निरवज्जकजसज्जाओ।
तस्स चरो बेयाली, अगन्नकारुन्नमाइगुणसाली । प्राणाविय सुदृडेहिं, राया पक्खिवा ओरोहे ॥३१॥
निवं परोषयारी , आसि दढं पावपरिहारी ॥५॥ ताण सुरुवं दट्छु, चिंतह निवई महो अहं धन्नो।
सो अइउदारयाए , पइदिवसं असणमाइसमपुर्ण। जं निसुया दिट्ठाओ, मम गेहमिमाउ पत्ताओ॥ ३२॥
दाउ कस्सइ उचियं, पच्छा भुंजा सयं नियमा।।५६ ।। बहुचाइवयणपुव्वं, विसर पत्थि तो नियो ताहि ।
सो अन्नदिणे बिंदु-ज्वाणो, पडिमाठियं सविहिनाई। सम्रोण य वयणाहि. महासहहिं इमं भणिो ॥ ३३॥ उवसमरसं व मुत्तं , दट्टुं तुट्टो थुणा एवं ।। ५७ ॥ पररमणीरमाय, स्वं पासंति अहह मूढमणा ।
जिलस्तुतिकाव्यम्ममणाग पि हुअप्पं, निवडतं भीमभवकृपे ॥ ३४॥
वपुरि अंगविनासु वपुरिलोयणपणलवणिम, परजुबाजुब्वणभरं, जे जोअंते जण जए जिणइ ।
कटरिभालुसुबिसालु कटरिमुहकमलपसचिम । कुसुमसरो वि अणंगो, कह ते वुवंति नरसीहा ॥ ३५॥
भरिरि सरलुभुयजुयलु अरिरि सिरिवत्थहसस्थिम, परकतं कामंता, गयसुचरियजीविया महामलिणा।
अाइयचरण भवहरण अइयसव्वंगसुचंगिम ॥ गुरुपावकारिणो इव, कह ते दसति निययमुहं ॥ ३६ ॥
भरि कुणह नयणघणुरंक धउ वलिवलिजोइवि पहु पर। इह विनडिय अप्पाणं, कुलं कलंकि अकित्ति अर्कता। देवादिदेव तिहुयण तिलो परमप्पउंजिम लहु हु लहु।५८। अइदुस्सहनरयदुह-गितावतवि-भमंति भवे ॥ ३७॥ ।
एवं थुणिऊण अणू-ण भत्तिरायण सुद्धसद्धिलो। स्य सुणिय दोसजालं , नराहमाणं विसावीसाणं।
बहुमाणमुब्वहतो, जिणम्मि सगिह इमो पत्तो ॥५६॥ माणसा वि सीलरयण, मा महल्प कलसंभूया ॥३॥ पत्राणुबंधिपुग्नो-दपण अह तस्स भोयगावसरे। इय सुरिणय सोविलक्लो,सयलदितनिसंच कह कह वि।। सिरिसुविहिजिणो भिक्खा-नागो गिहदुवारम्मिा॥६॥ गमि गोसे पत्तो, तासि पासे पुलो वि निवो ॥ ३८ ॥
तं सुटूटु दडु बंदी, अमदाणंदजायरोमंचो। ता नियह ताउ सम्वा-उजलग जालालिकविलकेसानो। पडिलाभेद जिणिदं , परिवेसियकामगुणिएणं ।। ६१ ॥ भइसयबीभच्छीत्रो, जरजीवरमलिणगत्तानो ॥४०॥ चितर य अहं धन्नो , अजमम जम्मजीवियं सहलं । परिगलियजुब्बणाओ, रागीण विरागकरणपउणाश्रो। जं पाणिपुडेणमिणं , दाणं गिराहा सयं भयवं ॥ १२ ॥ चितर य निराणंदो, वेरग्गगो नरवरिंदो ॥४१॥
अह उग्घुटुं गयणे , अहो सुदाणं अहो सुदाणं ति । किएस दिष्टिबंधो, मइमोहो वाऽवि सुविणो किंवा।। वियसिय मुहेहि विबुहे-ति ताडिया अमरभेरीमो ॥६३॥ किंवा दिवपोगो, अहवा पावप्पभावो मे ॥ ४२ ॥ बहुजणजणियचमकं , गंधोदगकुसुमबरिसणं जायं । अहह हयासण मए, कलंकियं नियकुलं सया विमलं । उक्कोसा वसुहारा , पडिया भुवणंगणे तस्स ॥ ६४॥ वित्थारिश्रो य भुवण, तमालदलसामलो अयसो॥४३॥ नर सुर असुरपहू विहु , वंदिनु वंदियो वि से पत्ता। दशाह बहुविहं जू-रिऊण राया विसजए तायो ।
सुह परिणामेण तया , जाया सम्मत्तसंपत्ती ॥६५॥ विणयंधरस्स पासे, सज्जो जाया सरूवत्था ॥ ४५ ॥ काउं सुपत्तपत्तं , वित्तं चित्तम्मि जिणमणुसरंतो। इत्तो य तत्थ नयरे, पत्तो सिरिसरसेणवरसूरी ।
सो चाय पूरदेहं , पत्तो पढमें अमरगेहं ॥६६॥ पत्ता गुरुनमणत्थं, निवविणयंधरपउरलोया ॥४५॥ तत्तो चविश्री एसो, जाओ विणयंधरो उ लोयपियो। तिपयाहिणपुग्वमपु-ब्वभावभावियमणा नमिय गुरुणो। तहाणपुत्रवसो , इमाउ जायाउ जायाओ ।। ६७ ।। निसियति उचियंदसे, इय कहइ गुरू वि धम्मकहं ॥४६॥ तुह बेरग्गनिमित्तं , तासिं सुइसीलरंजियमणाए । धम्मो दुविहो भणियो, जिणेहि जियरागदोसमोहेहिं। सासणदेवीह तया , इमा विरुवाउ विहियाओ ।। ६८।। सिवनयरिगमणगम्भो, सुसाहुधम्मो य गिहिधम्मो ॥४७॥ इय सुणिय फुरियगुरुवरण , धम्मबुविनियो । तत्थ य पढम साव-ज कजपरिवजणुज्जुओ उज्जू ।
काऊण रजसुत्थं, सुत्थमाणो गिरावर विक्स ।। ६६ ।। पंचमहन्वयपव्वय-गुरुभारसहुबहणपवणो ॥४८॥
विणयधरो वि धम्मे, बहुमाणं बहुजणाण बहतो। समिईगुत्तिपवित्तो, अममत्तो सनुमित्तसमचित्तो।
चउहि वि भजाहि समं, महाविभूई पब्बडओ ॥ ७॥ खतो दंतो संतो, अवगयतत्तो महासत्तो ॥ ४६॥
पउरावि सससीए, धम्म गहिउं वयंति सट्टाण। निम्मलगुणगणजुत्तो, गुरुपयभसो करे जो सत्तो।
सूरी वि सपरिवारों, सुहेण अन्नत्थ विहरे ॥ ७॥ सो अचिरेण पावइ, सुमम्गलग्गो पवग्गपुरं ॥ ५० ॥
तो धम्मबुद्धि विणयं-धर मुणिणो चरियचरणमकलंक। तकरणासत्तेहि, सावगधम्मोऽवि होइ कायब्यो ।
निहणियअसेसकम्मा, जाया संकलियसिवसम्मा ।। ७२ ।। कालेण सोऽविसिवसु-खदायगो देसिनो समए ॥५१॥
श्रुत्वेति वृत्तं विनन्धरस्य, इय सोउं धम्मकह, लद्धावसरेण पुच्छियं रना।
प्रभूतलवाहितबोधिबीजम् । भयवं ! किं कयमसम, सुकयं विणयंधरेण पुरा ॥५२॥
भो भव्यलोका ! विलसद्विवेका! जं सम्वपित्रो एसो, पियाउ एयस्स पवररुवाओ।
लोकप्रियत्वं गुणमाश्रयध्वम् ।। ७३ ।। केण पोगेण तया, ताउ विरुवाउ जायाओ ॥ ५३ ॥ इति विनयंधरकथा समाप्ता ।ध०र०१ अधि०४ गुख ।
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