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पमायहाण
तालिसे से कुप | दुक्खस्स संपीलमुवे वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। ५२ ।। गंगाssersyre य जीवे,
चराचरं हिंसइगरूत्रे | चितेहि ते परतावे वाले, पीले त गुरु किलिट्टे ।। ५३ ।। गंधारण परिण, उप्पायणे रक्खणसन्निभोगे । वियोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले यत्तिलाभे १ ।। ५४ ।। गंधेति य परिग्गहे य, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिं । दोसे दही परस्स, Minister अदत्तं ।। ५५ ।। aress भिभूयस्स तहारिणो, गंधेति परिग्गहे य । माया बड्ड लोभदोसा,
तथा दुक्खा न विमुच्चई से ।। ५६ ।। मोस्स पच्छाय पुरस्थओ य पोगकाले यदुही दुरंते । एवं दाणि समाययेतो,
गंधे अतित दुहि शिस्सो ।। ५७ ।। गंधारतस्त नरस्त एव, को सुहं हो कमाइ किंचि ? |
तत्थभोगे किलेस, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ५८ ॥ Raja पत्रसं,
दुवोहपरंपराओ | चित्तोय चिणा कम्मं,
जं से पुणो होइ दुहं विभागे ॥ ५६ ॥ गंधे वित्त मोिगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्प भवि संतो, जलेश वा पोक्खरिणीलासं ॥ ६० ।। जीहाएर हणं वर्षति,
तं रागहेतु साहु |
दोस माहु, समोय जो तेसु स वीरागो ।। ६१ ।। रसस्स जीहं गहरी वयंति,
( ४६१)
अभिधानराजेन्द्रः |
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पमायट्ठाण
जहाए रसं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समन्नमाद्द्, दोसस हे महु ॥ ६२ ॥ रसेसु जो गिद्धेमुवे तिव्यं, अकालियं पावर से विणासं ।
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रागाउरे वसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमसभोगगिद्धे ॥ ६३ ॥ जे यावि दोसं समुवे तिव्वं तंसिक्ख से उ उबेइ दुक्खं । दुतदोसेण सएण जंतू, न किंचि रसं एतरते रुरंसि रसे
भई से ।। ६४ ।।
तालिसे से कुपसं । दुक्खस्स संपीलमुवे वाले, न लिई तेरा मुखी विरागो ।। ६५ ।। रसाणु गाssसाऽगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे । चितेहि ते परतावे वाले,
पीले अत्त गुरु किलिट्ठे ॥ ६६ ॥ रसावा परिग्गण, उपायणे रक्खणसन्नियोगे ।
विओगे य कहं मुहं से.
संभोगकाले य अतितलाभे १ ।। ६७ ।। रसेत्य परिग्गय, सत्तोत्रसत्तो न उत्रे तुहिं ।
दोसे दुही परस्स, लोभाविले आयई दत्तं ॥ ६८ ॥ ताऽभिभूयस् प्रदत्त हारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मयामु बढइ लोभोसा,
तत्थाय दुक्खा न विचई से ।। ६६ ।। मोम्स पच्छा पुरत्थय, योगकाले यदुही दुरंते । एवं अत्ताणि समाययेतो, सेतो दुहिस्सो ॥ ७० ॥ रसागुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? | तत्थभोगे व किलेसदुक्खं,
road जस्स का दुक्खं ॥ ७१ ॥ रसम्म एमेव गोपसं,
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