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जत्तपरिणा
अभिधानराजेन्दः।
नत्तपाण पडियाइक्खिय सोकायमणिकरणं, वेरुलियमणिं पणासेइ ।। १३८ । छूढा महापइया, अहयं भागहइस्सामि ॥१५॥ दुक्खखयं कम्मखयं, समाहिमरणं च बोहिलाभो य । भरतसिद्धकेवलि-पञ्चक्खं सबसंघसक्खिस्स । एवं पत्थेयव्वं, न पत्थणिज्जं तो अनं ॥ १३६ ॥ पञ्चक्खाणस्स कय-स्स भंजणं नाम को कुणी ॥१५६।। उज्झिय नियाणसल्लो, निसिभत्तनिवित्तिसमिइगुत्तीहिं। भालुंकीए करुणं, खतोतो घोरवेयणातो वि । पंचमहब्बयरक्खं, कयसिवसुक्खं पसाहेइ ॥१४॥ भाराहणं पहिवनो, माणेण अवंतिसुकुमालो॥१६॥ इंदियविसयपसत्ता, पति संसारसायरे जीवा ।
मुग्मितगिरिम्मि सुको-सलो वि सिद्धत्थदइयो भवयं । पक्खि मछिनपक्खा,सुसीलगुणपेहुणविणा ।।१४१॥ वग्धीए खज्जतो, पडिवनो उत्तम भटुं ॥ १६१॥ न लहइ जहा लिहतो, सुहिल्लियं भट्टियं रसं सुणो।
गोटे पाओवगो, सुवंधुणा गोमए पलिबियम्मि । सोसइ तालुयरसियं, विलिहंतो मभए सोक्खं ॥१४२॥
इज्झतो चाणको,पडिवमो उत्तम अटुं॥१६२।। महिलापसंगसेवी, न लहइ किंचि वि सुई तहा पुरिमो।
अवलंबिऊण सत्तं, मुमं पिता धीर ! धीरयं कुणतु । सो मन्मए वराओ, सयकायपरिस्सम सुक्खं ॥ १४३॥
भावेसु य नेगुल्म,संसारमहासमुहस्स ॥ १६३ ।। सुट्ट वि मम्गिजंतो, कत्थ वि केलीइ नत्थि जह सारो।
जम्मजरामरणजलो, प्रणाइमं वसणसावयाइयो । इंदियविसएसुतहा, नत्थि सुहं सुद वि गविढे ॥१४४॥
जीवाण दुक्खहेऊ कटुं रुदो भवसमुद्दो ॥ १६४॥ सोएण पचसियपिया, चक्खरापण माहुरो वणिो ।
धोऽहं जेण मए, अणोरपारम्मि भवसमुदम्मि । घाणेण रायपुत्तो, निहो जीहाइ सोदासो ॥१४॥
भवसयसहस्सदुलहं, लद्धं सद्धम्मज्ञाणमिणं ॥१६५ ॥ फासिदिएण दुट्ठो, नवो सोमालियामहीपालो।
एयस्स पभावेणं, पालिज्जंतस्स सइपय नेणं । एकिकेण विनिया,किं पुण जे पंचसु पसत्ता ॥१४६॥
जम्मंतरे वि जीवा, पावंति व दुक्खदोगचं ॥ १६६ ॥ विसयाविक्खो निवडाइ, निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोई ।
चिंतामणी अउव्यो, एयमउन्बो य कप्परुक्ख त्ति । देवीदीवसमागय-भाउअगा दुन्नि दिलुता ॥ १४७॥
एसो परमो मंतो, एयं परमामयं अत्थ ॥ १६७ ।। । छलिया अवयक्खंता, निरावयक्खा गया अविग्घेणं ।
अहमणिमंदिरसुंदर-फुरंतजिणगुणनिरंजणुओयो।' तम्हा पवयण सारे, निरावयखेण होयव्वं ॥ १४८॥
पंचनमुक्कामसमे, पाणे पणो विसजेइ ॥ १३८ ॥ विसए अवयक्खंता, पडंति संसारसायरे घोरे ।
परिणामविसुद्धीए, सोहम्मे सुरवरी महिड्डीए । विसएसु निराविक्खा, तरंति संसारकतारं ॥ १४६ ॥
बाराहिऊण जायइ, भत्तपरिमं जहां सो ॥१६॥ ता धीर ! घिडवलेणं, दुईते दमसु इंदियगइंदे ।
उक्कोसेण गिहत्थो, मच्चुयकप्पम्मि जायए अमरो। तेणुक्खयपडिवक्खो, हराहि पाराहणपडागं ।। १५० ॥
निब्याणमुहं पाबइ, साहू सबट्टसिद्धि वा ॥ १७ ॥ कोहाईण विवागं, नाऊण य तसि निग्गहेण गुणं ।। निग्गियह तेण सुपूरिस!,कसायकलियो पयतेण॥१५॥
इय जोईसरजिणवी-रभद्द भणियाणुसारिणीमिणमो । जे भइतिक्खं दुक्खं, जं च सुई उत्तिमं तिलोईए।
भत्तपरिमं धना, पढ़ति भावंति सेवंति ॥ १७ ॥ तं जाण कसायाणं, वुडिक्खयहे उयं सव्वं ।। १५२ ।।
सत्तरिसयं जिणाणं, व गाहाण समयक्खित्तपमत्तं । कोहेण नंदमाई, निहया माणेण फरसरामाई।
भाराहतो विहिणा,सासयसोक्खं लहइ मोक्खं ॥१७२॥ मायाए पंडरज्जा, लोहेणं लोहणंदाई ॥ १५३ ॥
इति श्री भत्तपरित्रा सम्मत्ता ।। इय उपसामयपा-गरण पहाइयम्मि चित्तम्मि । भत्तपाणपडियाइक्खिय-भक्तपानप्रत्याख्यात-पुं० । भक्तं व जाभो सुनिव्वुश्रो सो, पाऊण व पाणियं तितिओ १५४ पानं च भक्तपाने प्रत्याख्यायेते येन स तथा 1 तान्तस्य परइच्छामो अणुसहि, भंते ! भवपंकतरणदढलटिं।
निपातः, सुखाऽऽदिदर्शनात् । भक्तप्रत्याख्यानवति, व्य०१ जंजह उत्तं तं तह,करेमि विणयाऽणओ भणइ ॥१५५॥
उ०म० । वृ० । अनशनिनि, कल्प० ३ अधि०२क्षण। जइ कह वि सुहकम्मो-दएण देहम्मि संभवे वियणा। भत्तपाणपडियाइक्खियं निग्गथिं निग्गथे गिरोहमाणे महवा तयहाईया, परीसहा से उदीरिजा ।। १५६ ॥ नाइक्कमइ ॥ १२ ॥ निर्बु महरं पन्हा-याणिज हिययंगमं प्रण लियं च ।
अस्य संबन्धमाहतो सेहावयचो, सो खवो पामतेण ॥१५७ ॥ पच्छित्तं इत्तरिमो, होइ तबो वलियो य जो एस । संभरसु सुयण! जे तं, मज्झम्मि चउनिहस्स संघस्स ।
प्रावकथितो पूण तवो, होति परिमा अणसणं तु ॥२०४॥ "भाउभजुयलं च मणियं च " इति पाठान्तरम्।
प्रायश्चित्तरूपं यदेतत् तपोऽनन्तरसूत्रे वर्णितमेतत्तपरत्वरे
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