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(१३६३) मतपरिएगा अभिधानराजेन्डः।
भत्तपरिएगा पा भखसु भखसु सच्चं, जीवहिपत्यं पसस्थमिमं १८ कयविप्पियं पइंझ-त्ति निति निहणं यासाश्रो ॥११॥ विस्ससणिजो माया, च होइ पुज्जो मुरु ब लोअस्स । रमणीयदंसणाओ, सुउमालंगीनों गुणनिबद्धाओ। सयणु व सच्चवाई, पुरिसो सम्बस्स होइ पिभो ॥ ६६ ॥ नवमालइमालाओ, व हरंति हिययं महिलियानो॥११६।। होउ व जडी सिहंडी, मुंडी वा पक्कली व नग्गो पा। । किंतु महिलाण तासिं, सणसुंदरजणियमोहाणं । लोए असच्चाई, भन्मइ पासंडचंडालो ॥१०॥ आलिंगणमइरादे-
इझमालाण व विणासं ॥१२०॥ अंलियं समं पि भणियं, विहणइ बहाई सच्चवयणाई ।। रमणीपादसणं चे-व सुंदर होउ संगमसुहेणं ।। पडिभो नरपम्मि वम्, इक्केण भसच्चरयणेण ॥१०॥ गंधो ब्विय सुरहिमा-लईइ मलणं पुण विणासो ॥१२॥ मा कुणसुधीर ! बुदि, अच्यं व बहुं व परघणं चित्तुं । । साकेयपुराहिबई, देवरई रजसुक्खपन्भट्ठो। दंतंतरसोहणयं, किलिंचमित्तं पि अविदिनं ॥ १०२ ॥ पंगुलहेउं बूढो, बूढो य नईइ देवीए ॥ १२२॥ जो पुण अत्थं अवहरह, तस्स सो जीवियं पि अवहरह। सोयसरी दुरियदरी, कवडकुडी महिलिया किलेसकरी । जं सो प्रत्यकएणं, उज्झइ जीयं न पुण अत्यं ॥१३॥ वइरविरोयणभरणी, दुक्खखणी सुक्खपडिवक्खा ।१२३॥ तो जीवदयापरणं, धम्म गहिऊण गिएह माऽदिनी । अमुणियमाणपरिक्कम्मों, सम्मको नाम नासिङ तरह। जिणगणहरपडिसिद्धं, लोगविरुद्धं महम्मं च ॥१०४॥ वम्महसरपसरोहे, दिद्विच्छोहे मयच्छीणं ॥ १२४ ।। चोरो परलोगम्मि वि, नारयतिरिएसु लहइ दुक्खाई । घणमालाउ व दुरु-नमंतसुपओहराउ वटुंति । मणुयत्तखे वि दीणो, दारिदोवडुओ होइ ।। १०५।। मोहविसं महिलाओ, पालकविसं व पूरिसस्स ॥१२॥ चोरिक्कनिवित्तीए, सावयपुत्तो जहा सुई लहइ। परिहरसु तो तासिं, दिहि दिट्ठीक्सिस्स व अहिस्स । किढिमोरपिच्छचित्तियं-गुद्री चोराण चलणसु॥१०६॥ जं रमणिनयणवाणा, चरिचपाणे विणासंति ॥१२६॥ रक्खाहि बंभचेरं, भगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं ।
महिलासंसम्गीए, अग्गी इस जंच अप्पसारस्स। निचं जिणीहि कामं, दोसपकामं वियाणित्ता ।। १०७॥
मीण व मणो मुणियो,विहंत सिग्यं चिय विलाइ ।१२७/ जावइया किर दोसा, इह परलोए दुहावहा हुंति ।
जइ वि परिचत्तसंगो, तवतणुयंगो तहावि परिवहह। प्रावहइ ते उ सब्बे, मेहुणसनापणुस्सस्स ॥ १०॥
महिलासंसम्गीए, कोसाभवणूसिय बरिसी॥१५८।। रइभरइतरलजीहा-जुएण संकप्पउक्कडफणेण ।
सिंगारतरंगाए, विज्ञास बेलाऍ जोधणजलाए । विसयविलवासिणा, मदमुहेण विम्बोअरोसेण ॥१०॥
के के जयम्मि पूरिसा, नारिनईए न बुइंति ॥१२६।। कामसुभगेण दहा, लज्जानिम्मोयदप्पदाढण। ।
विसयजलमोहकलं, विलासबिम्बोयजलयराइप्लं ।
मयमयर उत्तिन्ना, तारुन्नमहसवं धीरा ॥ १३०॥ भासंति नरा अवसा, दुस्सहदुक्खावहविसेण ॥११॥ ललकनरयचियणा-उ घोरसंसारसायरन्वहणं ।
अम्भितरवाहिरए, सव्वे संगे तुमं विवजेहि । संगच्छई न पिच्छइ, तुच्छत्तं कामियमुहस्स ॥ १११॥
कयकारियऽणुमईहिं, कायमणोपायजोगेहिं ।। १३१॥ बम्महसरसयविद्धो, गिद्धो वणिउन्म रायपत्तीए।
संगनिमितं मारइ, भणइ अलीयं करेइ चोरिकं । पाउक्खालयगेहे, दुग्गंधेणेगसो बसिनो ॥ ११२।।
सेवह मेहुणमित्यं, अप्परिमाणं कुणइ जीवो ॥ १३२ ।। कामाऽऽसत्तो न मुणइ,गम्माऽगम्यं पि वेसियाणु ब। सगा महाभा ज, विहाडमा सावएण सभण । सिट्ठी कुवेरदत्तो, निययसुयासुरयरइरत्तो॥ ११३॥
पुत्तेण हिते अत्य-म्मि मुणिवईकुंचिएण जहा ॥१३३॥ पडिपिल्लियकामकलिं, कामग्यस्थासु मुयसु अणुबंधं ।
__ सबग्गंथविमुक्को, सीईभूओ पसंतचित्तो य। महिलासु दोसविसव-धरीमु पयई नियच्छतो ॥११॥ जंपावद मुचिसुहं, न चकवट्टी वि तं लहइ ॥ १३४ ॥ महिला कुलं सुवंसं, पई सुयं मायरं व पियरं वा। निस्सहस्सेह पह-बयाई अक्खंडनिव्वणगुणाई । विसर्यधा प्रगणंती, दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ ॥ ११५॥
उपहम्मंति य ताई, नियाण सल्लेण मुणिणो वि ॥१३॥ नीयंगमाहिं सुपनो-हराहिं, उप्पिच्छमंथरगईहिं। मह रागदोसगम्भ, च पोहगम्भं च तं भवे तिविहं । महिलाहि निम्नयाहि व,गिरिवरगुरुया विमअंति११६ धम्मत्थं हीणकुला- पत्थणं मोहगम्भं तं ॥ १३६ ॥ सुङ वि जियासु सुट्ट वि, पियासु सुट्ट वि परूढपिम्मासु । रागण गंगदत्तो, दोसेणं विस्सभूइमाईया । महिलासुमसुभगीसु भविस्संभं नाम को कुणह॥११७ मोहेण चंडपिंगल-माईया हुति दिटुंता ॥ १३७॥ विस्संभनिन्भरं पिह, उपयारपरं परूढपिम्मंपि।
अगणिय जो मोक्खसुई,कुणइ नियाणं असारसहहे ।।
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