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किश्तवाड़ में इसकी खेती की जाती है। यहां का उत्पन्न हुआ केशर भावप्रकाशकार की दृष्टि से सर्वोत्तम समझा गया है ।
Crocus sativus linn.
करार
पुष्प
विवरण- इसका बहुवर्षायु क्षुप १.५ फुट तक ऊंचा होता है। जड़ के नीचे प्याज के समान गांठदार कंद होता है। इसमें काण्ड नहीं होता। पत्ते घास के समान लम्बे, पतले, पनालीदार और जड़ ही से निकले हुए मूलपत्र रहते हैं। इनके किनारे पीछे की तरफ मुडे हुए होते हैं। आश्विन कार्तिक में इस पर फूल आते हैं। फूल एकाकी या गुच्छों में नील लोहित वर्ण के पत्तों के साथ ही शरद ऋतु में आते । नीचे के पत्रकोष (Spathe) पुष्पध्वज (Scape) को घेरे रहते हैं तथा दो हिस्सों में विभक्त रहते हैं। परिपुष्प निवापसम, नाल पतला, दल ६ खण्डों में विभक्त दो श्रेणियों में एवं नाल का कण्ठ श्मश्रुल (बालों से युक्त) रहता है। कण्ठ पर ३ पुंकेशर रहते हैं एवं परागाशय पीतवर्ण का रहता है । कुक्षिवृन्त परिपुष्प के बाहर निकले हुए नारंग रक्त रंग के, मुद्गराकार अखण्ड या खण्डित रहते हैं। फल सामान्य स्फोटी आयताकार एवं बीज गोल होते हैं 1
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जैन आगम वनस्पति कोश
इन फूलों के स्त्रीकेशर के सूखे हुए अग्रभाग जिन्हें कुक्षि कहा जाता है उन्हें ही केशर कहते हैं ।
कुक्षि ३, कुक्षिवृन्त के ऊपर लगी हुई या अलग, करीब १ इंच लम्बी गहरे लाल से लेकर हल्के रक्ताभ भूरे रंग की एवं सामान्य दन्तुर या लहरदार होती है। कुक्षिवृन्त करीब १ से०मि० लम्बे करीब-करीब रंभाकार, ठोस, पीताभ भूरे से लेकर पीताभ नारंगी रंग के रहते हैं। इसमें विशिष्ट प्रकार ही तीव्र सुगंध रहती है, तथा इसका स्वाद सुगंधि तथा कड़वापन लिए हुए होता है । (भाव० नि० कपूर्रादिवर्ग पृ० २३३)
कुंद
कुंद (कुन्द) कुंद
भ० २२/५ रा० २६ जीवा० ३/२८२प० १/३८/३
पुष्प
पत्र
कुन्द के पर्यायवाची नाम
LE/KE
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पुष्प काट
कली
कुन्दः सुमकरन्दश्च सदापुष्पो मनोहरः ।। अट्टहासो भृङ्गसुहृच्छुक्लः शाल्योदनोपमः । । १३८ ।। कुन्द, सुमकरन्द, सदापुष्प, मनोहर, अट्टहास,
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