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जैन आगम : वनस्पति कोश
सर्वत्र सुलभ है। किन्तु काली कसौंदी अब दुर्लभ होती क्षुप वर्षान्त में या शीतकाल में फूलता फलता है। हेमन्त जाती है। यह प्रायः पर्वतीय प्रदेशों में गांवों के आसपास में फलियां परिपक्व होने पर यह सूखने लगता है। कहीं-कहीं मिलती है। ब्रह्मदेश में यह अधिक पायी जाती फलियां ३ इंच लम्बी तथा आधे इंच से कुछ कम चौड़ी,
लम्बी, पतली, चिकनी व चिपटी होती है। बीज प्रत्येक कली में १० से ३० तक भूरे चक्रिकाकार या गोलाकार होते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० १८२)
किंसुय किंसुय (किंशुक) ढाक पलाश
रा०२७
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पुष्प ७
दाक BUTEA FRONDOSA ROXB.
फली
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विवरण-शाकवर्ग और सुरसादि गण की यह वनौषधि नैसर्गिक क्रम से मुख्यतः शिम्बी कुल एवं उपकुल पूतिकरंज कुल की है। इसके मुख्यतः दो भेद हैं। एक अर्थात् साधारण कसौंदी, दूसरे भेद का काली कसौंदी या वांस की कसौंदी नाम है।
सर्व साधारण कसौंदी का क्षुप चकवड़ के क्षुप जैसा वर्षारम्भ में ही कूड़ाकर्कट वाले खाली स्थानों पर उपज आता है तथा पूर्ण वर्षाकाल तक यह अधिक से अधिक
किंशुक के पर्यायवाची नाम५-६ फीट लंबा सीधा बढ जाता है। यह बहुशाखायुक्त
किंशुको वातपोथश्च, रक्तपुष्पोऽथ याज्ञिकः । होता है। पत्रसंयुक्त आमने-सामने, प्रत्येक सीक में प्रायः ।
त्रिपर्णो रक्तपुष्पश्च, पूतद्रुब्रह्मवृक्षकः ।।१४८ // ५-५, दो से चार इंच लम्बे तथा १.२५ से ३ इंच चौड़े,
क्षार श्रेष्ठ: पलाशश्च, बीजस्नेहः समीद्वरः ।। गोल नुकीले होते हैं। पत्र का ऊपरी भाग चिकना,
किंशुक,वातपोथ,रक्तपुष्प, याज्ञिक, त्रिपर्ण, पूतद्रु, अधोभाग कुछ खुरदरा सा होता है। फूल क्षुद्र पीतवर्ण
__ ब्रह्मवृक्षक क्षारश्रेष्ठ, पलाश, बीजस्नेह, समीद्वर ये सब के, चकवड़ के पुष्प जैसे १ इंच व्यास के होते हैं। यह
किंशुक के पर्याय है। (धन्व० नि०५/१४८,१४६ पृ० २६७)
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