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जैन आगम : वनस्पति कोश
कलंबिका के पर्यायवाची नाम हैं।
(कैयदेव० नि० औषधिवर्ग० पृ०१७७) अन्य भाषाओं में नामहि०-कलंबीशाक, करमी, कलमी का साग,
-कल्मीशाक । ते०-तोमेवच्चलि। म०-नाली ची भाजी। गु०-नालोनी भाजी । अ०-SwampCabbage (स्वम्प कॅबेज)। ले०-Ipomoea aquatica Torsk (आइपोमिया अक्वेटिका)।
उत्पत्ति स्थान-यह लताजाति की वनस्पति प्रायः सब प्रान्तों के सजल स्थान में जल के ऊपर तैरती हुई या समीप की भूमि पर फैली हुई दिखाई देती है।
विवरण-पर्व से इसकी जड़ निकल कर कीचड़ में फैलती है। डंडी पोली होती है। पत्ते ३ से ६ इंच लंबे, दीर्घवृत्ताभ या अंडाकार-आयताकार आधार की तरफ हृदयाकार या दो कोने निकले हुए एवं लंबे वृन्त से युक्त होते हैं। फूल नलिकाकार १ से २ इंच लंबे, निसोत के समान श्वेत या हलके जामुनी (कंठ में गाढ़े जामुनी) रंग। के तथा एकाकी या ५ के समूह में आते हैं। फल .८ से०मी० व्यास में गोलाभ चिकना तथा २ से ४ घनरोमश बीज युक्त होता है। इसकी नवीनशाखाओं तथा पत्तों का शाक होता है। (भाव०नि० शाकवर्ग० पृ० ६७०)
कलम या कलमाधान वह है जो एक स्थान में बोया जाय तथा दूसरे स्थान में उखाड़ कर लगाया जाय । इसे ही जड़हन कहते हैं। मगध आदि देशों का कलमाधान पसिट है। काश्मीर में इसे महातण्डल कहते हैं।
शालिधान्य-जो भूसी रहित श्वेत हो अर्थात् बिना कांडे कूटे ही जो श्वेत होते हैं। एवं हेमन्त ऋतु में उत्पन्न होते हैं। उन्हें शालिधान्य, जड़हन या मुड़िया कहते हैं। इसके रक्तशालि, कमला आदि कई भेदोपभेद हैं।
इसे ही राजशालि (वासमती चावल) कहते हैं। अन्य चावल तष छडाने के बाद कटकर या मशीन पर साफ किया जाता है किन्तु यह बिना कूटे ही श्वेत एवं साफ बारीक सुन्दर और उत्तम होता है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ७३.७४)
कलाय कलाय (कलाय) छोटी मटर, बड़ी खेसारी
उवा० १/२६
पुष्य
कलमसालि कलमसालि (कलमशालि) कलम जाति के चावल
उत्त०१/२६ रक्तशालिः सकलमः, पाण्डुकः शकुनाहृतः । सुगन्धकः कर्दमको, महाशालिश्च दूषकः ।।४।। पुष्पाण्डकः पुण्डरीकस्तथा महिषमस्तकः । दीर्घशूकः काञ्चनको, हायनो लोध्रपुष्पकः ।।५।।
शालि (चावल) के जातिभेद से नाम-रक्तशालि, कलम, पाण्डुक, शकुनाहृत, सुगन्धक, कर्दमक, महाशालि, दूषक, पुष्पाण्डक, पुण्डरीक, महिषमस्तक, दीर्घशूक, काञ्चनक, हायन और लोध्रपुष्पक इत्यादि शालि (चावल) बहुत से देशों में उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के होते हैं। (भाव०नि० धान्य वर्ग पृ०६३५)
पाली
फलो
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