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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश उत्पत्ति स्थान-यह भारत के सभी प्रदेशों में और क्रौञ्चा, श्यामा, पद्मकर्कटी ये सब पद्मबीज के पर्याय हैं। विशेषकर उष्ण प्रदेशों में हिमालय पहाड तक तथा सिलोन । (राज. नि० १०/१८६ पृ० ३३४, ३३५) के जंगलों में तथा झाडियों के वृक्षों आदि पर अधिकता अन्य भाषाओं में नामसे पाई जाती है। हि०-कमलगट्टा। म०-कमलकाकडी ग०-पवडी।। _ विवरण-यह द्राक्षाकुल की एक बडी बेल होती है।वर्षा उत्पत्ति स्थान- यह भारत के सभी उष्ण प्रदेशों में होता ऋतु में इसकी हरीभरी बेल जंगलों,झाडियों तथा थूहर के वृक्षों हैं। पर खूब फैली हुई देखने में आती है। इसका डंठल पतला, विवरण-यह तालाबों में होने वाला विस्तृत जलीय क्षुप अनेक शाखा प्रशाखाओं से युक्त और त्रिकोणाकार होता है। है। इसकी जड कीचड में फैलती है। पत्र पतले १ से ३ फीट पत्ते की डंडी की दूसरी ओर अनियमित तागे के समान बाल व्यास के चक्राकार, चिकने, चमकीले, नतोदर तथा वृन्त होते हैं, जो झाडी आदि से लिपट जाया करते हैं। प्रत्येक सींक गोलायत होते हैं। पत्रनाल बहुत लंबा तथा उस पर दूर दूर छोटे पर तीन-तीन पत्ते लगते हैं। जिनमें से बीच का पत्ता बडा होता कांटे होते हैं। फूल एकाकी, ४ से १० इंच व्यास में श्वेत या है। पत्ते डंडी की ओर से गोलाकार होकर बीच के भाग में गुलाबी, सुगंधित तथा लंबे दंड पर आता है। गर्मी तथा अणीदार होते हैं। फूल किंचित् हरापन लिये सफेद रंग के वर्षाकाल में यह फूलते हैं। कर्णिका (बीजाधार) स्पंज के झूमकों में आते हैं और फल भी झूमकों में ही, मटर के समान समान एवं धूसर होती है, जिसमें १.५ इंच लंबे, गोल, काले गोल होते हैं। कच्चे रहने की दशा में हरे और पकने पर नीले तथा चिकने बीज होते हैं। इन्हें कमलगट्टा कहा जाता है। रंग के तीन चार बीज वाले और रस से भरे हुए होते हैं। बीज (भाव० नि० पुष्पवर्ग० पृ०४८०) त्रिकोणाकार और नुकीले होते हैं। इस लता के नीचे लगभग ९ इंच का एक कंद बैठता है। इस कंद से तंतु निकल कर जमीन कंदुक्क के अंदर फैलता है। और एक दो हाथ की दूरी पर वैसे ही एक प.१६४८५० एक कंद बैठता है। इस प्रकार जगह-जगह आठ दस कंद होते कंदुक्क (कंदुक) सुपारी हैं। इस बेल के पत्ते, डंडी, सब खट्टे होते हैं। कन्दुकम्। क्ली। पूगफले। अङ्गुरे। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० २०१) (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०५०,५१) कंबू कंदलि कंदलि (कन्दली) पद्मबीज, कमलगट्टा ___ भ० २२/१ उत्त० ३६/९७ कन्दली । स्त्री० कदली। पद्मबीज। (शालिग्रामौषधशब्द सागर पृ०२४) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कदलि के बाद कंदलि शब्द है। कंदलि के दो अर्थ हैं केला और कमलगट्टा । केला के अर्थ में कदलि शब्द आगया है इसलिए यहां कंदलि का अर्थ पद्मबीज ग्रहण कर रहे हैं। कंदली के पर्यायवाची नाम पद्मबीजन्तु पद्माक्षं, गालोदयं कन्दली च सा। भेडा क्रौञ्चादनी क्रौञ्चा,श्यामा स्यात् पद्मकर्कटी॥१८६॥ पदमबीज.पदमाक्ष,गालोदय,कन्दली.भेडा.क्रौञ्चादनी कंबू (कम्बू) शंख, शंखपुष्पी प० १/४८/३ विमर्श- कम्बूशब्द का अर्थ शंख होता है। शंख का पर्यायवाची नाम शंखपुष्पी है। शंखपुष्पी और कंबुपुष्पी पर्यायवाची नाम है। इसलिए यहां शंखपुष्पी अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। शड्.ख-Sanpha शङ्खपुष्पी-Synonym (Glossary of Vegetable Drugs in Brhattrayi Page 384) शंखपुष्पी के पर्यायवाची नाम शंखपुष्पी क्षीरपुष्पी, कंबुपुष्पी मनोरमा॥१४९३॥ शिवब्राह्मी भूतिलता, किरीटी कम्बुमालिका। मांगल्यपुष्पी शंखाहवा, मेध्या वनविलासिनी॥१४९४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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