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जैन आगम : वनस्पति कोश
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छोटे बीज होते हैं। छाल में घाव करने से लाल रस निकलता हि०-हरी दूब, बं०-नील दूर्वा। म०-नीली दूर्वा। गु०है जो कुछ दिनों में सूखकर काला और कड़ा हो जाता है। नीला ध्रो।क०-हसुगरूके ।ते०-दुर्वालु। ता०-अरुगम् पुल्ल। इसको उबालकर सुखाकर काम में लाते हैं। इसको मलावार उरिया-दुवा अं०-Creeping cynodon (क्रीपिंग साइनोडन)। काइनो कहते हैं।
ले०-cynodon Dactylon (साइनोडन टैक्टिलन)। ____ यह गाढ़ेवाल रंग के चमकीले पहलदार टुकड़ों में होता है। इसे किनारे से देखने से मानिक की तरह लाल या पारदर्शक दिखलाई देता है। इसको तोडने से भरे रंग का चरा निकलता है तथा सतह चमकीली होती है। इसे चबाने से यह दांत में चिपकता है तथा लार लाल हो जाती है। इसमें गंध नहीं होती. स्वाद कषाय रहता है। रखने से इसका कषायत्व कम हो जाता है। इसके गोंद एवं काष्ठसार का उपयोग किया जाता है
_ (भाव० नि० पृ० ५२४, ५२५)
असणकुसुम असणकुसुम (असमकुसुम) विजयसार के फूल
उत्त० ३४८ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में असण कुसुम' शब्द पीले रंग की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। विजयसार के पुष्प पीले
विवरण-इसके प्रत्येक कांड. प्रत्येक पर्व से प्ररोह होते हैं। विवरण-बिजैसार के पुष्प छोटे-छोटे नीम के पुष्पों जैसे
निकलकर पृथ्वी में प्रतिष्ठित होता है। जिस प्रकार क्षत्रिय राष्ट्र तुरों में पीताभ वर्ण के शीतकाल के प्रारंभ में निकलते हैं। पुष्प
में प्रतिष्ठित होता है। इसलिए इसे औषधियों में क्षत्रिय कहा चौथाई इंच के घेरे में बन्धूक या गुलदुपहरिया के पुष्प जैसे
लदपहरिया के पष्प जैसे जाता है। अन्य औषधियां लोमसदृश कही गई हैं। जबकि दुर्वा होते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ० ४११) को उनका प्राणरस कहा गया है। इसलिए यह उनमें प्रधान
औषधि कही गई है। इसके पुष्प का भी वर्णन मिलता है। असाढय
(अथर्व चिकित्सा विज्ञान पृ० २६२) असाढय ( ) नील दूर्वा, शतमूला ५० १४२।१
असोग विमर्श-पाठान्तर में आसाढय शब्द है तथा भगवती सूत्र
___ असोग (अशोक) अशोक वृक्ष में भी आसाढय शब्द है। प्रस्तुत प्रकरण में यह शब्द तृणवर्ग
भ० २२।२ जीवा० १७१ १० १।३५।३ के अन्तर्गत है। संस्कृत में आषाढा शब्द तृणवाचक है। इसलिए
अशोक के पर्यायवाची नाम - यहां आसाढय शब्द ग्रहण किया जा रहा है। __ आसाढय (आषाढा) दूर्वा, शतमूला।
अशोकः शोकनाशश्च, विचित्रः कर्णपूरकः। आषाढा के पर्यायवाची नाम -
विशोको रक्तको रागी, चित्र: षटपद्मजरी ॥१४६॥ आषाढा, सहमाना, सहस्रवीर्या, सहस्रकाण्ड, शतमूला,
अशोक, शोकनाश, विचित्र, कर्णपूरक, विशोक, रक्तक, शतांकुरा अवद्विष्टा, शपथयोपनी आदि दर्वा के पर्यायवाची रागी, चित्र और षट्पदमंजरी ये अशोक के पर्यायवाची नाम शब्द हैं। (अथर्व चिकित्सा विज्ञान पृ० २६२)
(धन्यः नि०५।१४६ पृ० २६६) अन्य भाषाओं में नाम -
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