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जैन आगम : वनस्पति कोश
गुडकामाई । म०-कानोणी । गु०-पीलुडी। फा०-रूबाह हि०-चौपतिया, सुनसनिया साग। बं०तुर्बुक । अ०-इनबुस्सा लव । अंo-Garden Nightshade सुषुणीशाक, शुनिशाक, शुशुनी शाक । ले0-Marsilea (गार्डेन नाइटशेड)। ले०-Solanumnigrumlinn (सोलॅनम् minuta linn (मार्सिलया माइन्सूटा लिन०) Fam. नाइग्रम लिन०) Fam. Solanaceae (सोलेनॅसी)। Rhizocarpeae (राइज्झो कापी)।
उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः सब प्रान्तों में एवं ८००० फीट तक पश्चिम हिमालय में उत्पन्न होती है।
विवरण-इसका क्षुप १ से १.५ हाथ तक ऊंचा होता । है और शाखाएं सघन होती हैं । यह गर्मी में नष्ट हो जाता है और वर्षा के अंत में उत्पन्न हो जाड़े में खूब हराभरा दिखलाई पड़ता है। इसके पत्ते अखंड, लहरदार या कभी-कभी दन्तर या खंडित, लट्वाकार, प्रासवत् लट्वाकार या आयताकार, ४x१.७ इंच तक बड़े और उनका फलक प्रायः वृन्त पर नीचे तक फैला रहता है।
पुष्प छोटे, सफेद और पत्रकोण से हटकर निकले, हुए पुष्पदंड पर समस्थ मूर्धजक्रम में निकले रहते हैं। फल गोल और पकने पर काले हो जाते हैं। कभी-कभी लाल या पीले भी होते हैं। (भाव०नि० पृ०४३८)
672. Marailea quadrifolia Linn, (ति भाक) काकमाची मधु च मरणाय
मकोय और मधु का मेल संयोगविरुद्ध और वासी शाक कर्मविरुद्ध है।
उत्पत्ति स्थान-यह शाकवर्गीय वनस्पति भारतवर्ष मकोय और मधु मिलाकर खाने से विष होकर मरण के प्रायः सब प्रान्तों के सजल स्थानों में कहीं न कहीं की आशंका रहती है। मकोय का वासी शाक खाने को पायी जाती है। वर्षाऋतु में यह अधिक उत्पन्न होती है। निषेध है।
(चरक०सू० २६-१६-२२)
विवरण-इसके नीचे विसपी पतला एवं सशाख काण्ड होता है। इसके छत्ते पानी के ऊपर तैरते हुए
दिखाई पड़ते हैं। प्रत्येक पत्रदंड पर चार-चार पत्ते कुक्कुडमस
स्वस्तिक क्रम में निकले रहते हैं, इस कारण इसे चतुष्पत्री कुक्कुडमंस (कुक्कुटमांस) चोपतिया शाक,
या चौपतिया भी कहते हैं। पत्ते और दंड आकार में छोटे सुनिषण्णक
___ भ०१५/१५२ बड़े हुआ करते हैं। पत्ते चांगेरी के पत्तों के समान किन्तु कुक्कुट के पर्यायवाची नाम
उनसे बड़े होते हैं। बीजाणुकोष एक विशेष प्रकार की शितिवारः शितिवरः, स्वस्तिक: सुनिषण्णक: अंडाकार परन्तु कुछ-कुछ चिपटी रचना के अंदर रहते श्रीवारक: सूचिपत्रः, पर्णकः कुक्कुटः शिखी।। हैं, जो फलों की तरह मालूम होती है। इसका साग
शितिवार, शितिवर, स्वस्तिक, सुनिषण्णक, निद्राजनक तथा दीपन होता है। निद्रा लाने के लिए तथा श्रीवारक, सूचिपत्र, पर्णक, कुक्कुट और शिखी ये अग्निमांद्य में इसका उपयोग करते हैं। चौपतिया के संस्कृत नाम हैं।(भाव०नि०शाकवर्ग०पृ०६७३,६७४)
(भाव०नि० शाकवर्ग वृ०६७४) अन्य भाषाओं में नाम
विमर्श-बंगाल में यह शाक बहलता से खाया
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