________________
जैन आगम वनस्पति कोश
सहस्रवेधि, जतुक, वाह्लीक, हिङ्गु, रामठ ये सब (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग० पृ०४०)
हींग के नाम हैं। अन्यभाषाओं में नाम
क०
हि० - हींग | बं० - हींग । प० - हिंगे, हींग । म० - हिंग | मा० - हींग | गु० - हिंगडो, वधारणी हिंगवधारणी । ते० - इंगुर, इंगुरा, इंगुव । ते० - पेरुंगियम् पेरुंग्यम् । ० - हिंगु । फा० - अंगूजह, अंगुजा । अंधुजेह-इलरी | अ० - हिलतीत, हिलतीस । अंo - Asafoetida (असेफीटिडा) । ले० - Ferula narthex Boiss (फेरुला नार्थेक्स बॉयस) F. Alliacea boiss (फे. एलिए सिआ ) Ferula foetida Regel ( फेरुला फीटिडा ) Fam. Umbeiliferae (अंबेलिफेरी) ।
उत्पत्ति स्थान - हींग के वृक्ष काबुल, हिरात, खुरासान, फारस एवं अफगानिस्तान आदि प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं तथा इस देश के पंजाब और काश्मीर में कहीं-कहीं देखने में आते हैं।
विवरण - यह हरीतक्यादि वर्ग और गर्जर कुल का बहुवर्षजीवी वृक्ष हस्व प्रमाण का ६ से ८ फीट लम्बा होता है । पत्र कोमल, लोमयुक्त, २ से ४ पक्ष युक्त होता है। पत्रदंड के दोनों ओर २-२ पत्र बहार निकलते हैं और अग्रभाग में एक पत्र होता है और पत्रों के किनारे कर्तित होते हैं। नीचे की ओर के पत्र १ से २ फीट लम्बे और डिम्बाकृति के होते हैं। पुष्पदंड के शेष भाग का दंड बृहत् और पत्रहीन होता है। फल १/३ इंची लम्बा १/४ इंची चौड़ा, गर्भाशय पर मसृण लोम होते हैं। इसके फल को अंजुदाल और निर्यास को हींग कहते हैं। फलने-फूलने का समय मार्च अप्रैल ।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० ४८३)
हिरिलि
हिरिलि (
) भ०७/६६ जीवा ०१ / ७३ उत्त०३६/६७ विमर्श - अभी तक इस शब्द का वानस्पतिक अर्थ उपलब्ध नहीं हुआ है।
हेरुताल (
Jain Education International
DOOD
रुताल
) महाशतावरी ?
जं०२/६
309
विमर्श - आयुर्वेदीय शब्दकोशों में हेरु शब्द मिलता है, हेरुताल शब्द नहीं। संभव है हेरु शब्द ही हेरुताल का वाचक हो ।
हेरुः । स्त्री । महाशतावर्य्याम् ।।
(वैद्यक शब्द सिंधु पृ०११६७) महाशतावरी के पर्यायवाची नामअभीरुस्तुंगिनी केशी पीवरी द्विपपीवरी । सहस्रवीर्या मधुरा फणिजिह्वोर्ध्वकंटका ||१०६५ ।। रुष्यप्रोक्ता सूक्ष्मपत्रा, महापुरुषदंतिका । महाशतावरी हृद्या, मेधाग्निबल शुक्रद । । १०६६ । । अभीरु, तुंगिनी, केशी, पीवरी, द्विपपीवरी, सहस्रवीर्या, मधुरा, फणिजिह्वा, ऊर्ध्वकंटका, ऋष्यप्रोक्ता, सूक्ष्मपत्रा, महापुरुषदंतिका ये महाशतावरी के पर्याय हैं। (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग० पृ०१६७)
अन्य भाषाओं में नाम
हि०- बड़ी शतावर । बं० - महाशतमूली । म०बड़ीशतावरी । गु० - शतावरी । ता० - पाणियनाम किलावरी । ते० - पिल्लिपिचारा । ले० -- Asparagus gonoclados Baker (एस्पेरेगसगोनोक्लेडोस) ।
उत्पत्ति स्थान - महारा, कोंकण, कनाडा, मद्रास का पश्चिमी घाट ।
विवरण - यह गुडूच्यादिवर्ग और पलाण्डुकुल की एक कंटकीय छोटी झाड़ी होती है। गोनोक्लोडोस चारों ओर फैलने वाली, बहुतशाखा और अच्छी तरह फैलने वाली पीताभ कुछ अंश में चढने वाली, कांटेदार । पुष्पकांड कोमल, नली सदृश शाखायें हरी, तीन कोण वाली । पाव से आधा इंच लम्बे ऊपर को मुडे हुए कांटों वाली । पत्र शाखा २ से ६ तक, पौन से एक इंच लम्बी, व्यास पाव इंच, तीक्ष्ण पत्रों वाली । पुष्प पत्र छोटे । पुष्प १/१२ इंच के सफेद । तुर्रा १ से ३ इंच लम्बा । फल गोलाकार अतिसूक्ष्म । कंद में शाखायें निकलकर चारों ओर फैलती है । अनन्तमूलों वाली कंद अधिक दीर्घ स्थूल. कठोर, सफेद और मधुर । यह झाड़ी प्रायः पर्वतों पर देखी जाती है। फल गोल पीलु तुल्य आते हैं।
( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०२०७ )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org