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जैन आगम वनस्पति कोश
जंगलों में होता है ।
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खैर
विवरण- इसका वृक्ष १० से ११ फुट (कहीं कहीं इससे भी अधिक) ऊंचा होता है । छाल खुरदरी, कंटकयुक्त, श्वेत या धूसरवर्ण की, आधे से पौन इंच मोटी होती है । काष्ठ का ऊपरी भाग पीताभ श्वेत तथा भीतर का रक्तवर्ण पत्र बबूलपत्र जैसे संयुक्त, लगभग २ से ४ इंच लम्बे तथा डंठल के नीचे की पत्ती के स्थान पर छोटे बडिशाकार भूरे या काले रंग के चमकीले कांटे होते हैं। पुष्प वर्षा के पूर्व ज्येष्ठ आषाढ तक छोटे पीताभ तीन पुष्पदल निकलते हैं । फली वसन्त या हेमन्त ऋतु में २ से ४ इंच लम्बी, आधे पौन इंच चौड़ी पतली, किंचित् धूसर वर्ण की चमकीली होती है, जिसमें ५ से १० तक गोल छोटे-छोटे बीज होते हैं।
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पुराना परिपक्व खैर के वृक्ष को तोड़कर छाल निकालकर अलग कर देते हैं तथा तने के मध्य भाग के महीने टुकड़े कर बड़े पात्र में भरकर भट्टी पर पकाते हैं। फिर छानकर गाढ़ा या घन क्वाथ तैयार कर छोटी बड़ी कई प्रकार की बना लेते हैं। यही कत्था या खैर कहा जाता है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०३६४)
DO.O
साल
साल (शाल) सांखू, साल
भ०२२/१ जीवा०१/७१ ५०१/३५/१
शाल के पर्यायवाची नाम
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शालस्तु सर्जकार्याश्वकर्णकाः शस्यशम्बरः शाल, सर्ज, कार्श्य, अश्वकर्णक और शस्यशम्बर
ये सब शाल के पर्यायवाची नाम हैं ।
अन्य भाषाओं में नाम
हि० - शाल, साल, साखु, सखुआ। बं० - शालगाछ, तलूरा । म० - रालचावृक्ष । गु० - शालवृक्ष, राल नुं झाड़ । ते० - जलरिचेट्टु इनुमद्धि । ता० - कुंगिलियम् । उ०- सल्व । नेपा० - सकब । अं० - The sal tree (दि साल ट्री) । ले० - Shorea robusta gaertn (शोरीया रोबस्टा ) । Fam, Dipterocarpaceae (डिप्टेरोकापेंसी)।
(भाव०नि०वटादिवर्ग पृ०५२०)
उत्पत्ति स्थान- ये हिमालय, पहाड़, सतलज नदी से आसाम तक, मध्य हिन्दुस्तान के पूर्वीभाग, बंगाल के पश्चिमी भाग और छोटानागपुर के जंगलों में होते हैं ।
विवरण- साल के वृक्ष बहुत बड़े विशाल होते हैं। इसके पत्ते ६ से १०x४ से ६ इंच एवं बड़े अण्डाकारआयताकार होते हैं। फूल पीले रंग के झुमको में वसन्त ऋतु में लगते हैं और फल छोटे होते हैं। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत और बड़े काम की होती है। फल वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पक जाते हैं। शालसार ताजा काटकर निकालने पर लाल या सफेद दोनों तरह का होता है, जिनमें से श्वेत साल अच्छा माना जाता है । शाल के निर्यास को राल कहते हैं । (भाव०नि०वटादिवर्ग०पृ०५२०)
देखें साल शब्द |
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सालवण
सालवण (सालवन) साल वृक्षों का वन
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जीवा०३ / ५८१ जं०२/६
सालि
सालि (शालि) शालि धान्य, चावल
भ०६ / १२६, २१/६ उवा०१/२६ प०१/४५/१: १७/ १२८ कण्डेन बिना शुक्ला, हैमन्ताः शालयः स्मृताः ।।३।। बिना कूटे ही जो सफेद होते हैं तथा हेमन्त ऋतु में उत्पन्न हो, वे शालिधान्य कहलाते हैं । शालिधान्य के १५ भेद
रक्तशालिः सकलमः पाण्डुकः शकुनाहृतः ।
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