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जैन आगम : वनस्पति कोश
के समान सफेद बीज होते हैं। इसके पौधे बीज से उत्पन्न होते उत्पत्ति स्थान-भारत में जहां-जहां जल की प्रचुरता हैं और हर समय इसको रोपण किया जा सकता है। परन्तु
तथा वायुमंडल उष्ण प्रधान शीत है वहां-वहां यह प्रचुरता से शीतकाल और ग्रीष्म ऋतु ही बीजों को रोपण करने का अच्छा
होता है। उदाहरणार्थ बंग प्रदेश, मध्य प्रदेश, बरार, बंबई आदि समय है। बीज वपन करके ऊपर मिट्टी का चूरा छींटकर कई
दक्षिण की ओर तथा उत्तर प्रदेश के गंगा जमुना के बीच के दिनों तक थोड़ा-थोड़ा जल का छींटा देकर जमीन को सरस रखना चाहिए। बीज बोने के पहले मिट्टी के साथ खमी या गोबर
प्रदेशों में यह बाग बाड़ियों में बहुतायत से होता है। चौमासे का चूर्ण मिलाने से पौधे सतेज होते हैं।
में इसके बीज जहां-तहां उग उठते हैं। उत्तर आष्ट्रेलिया में यह (धन्व० वनौ० विशे० भाग ६ पृ० ३७६.३७७) ।
खूब होता है। इस पर पानों की और द्राक्षा की बेलें बहुत अच्छी
तरह चढ़ती हैं, अत: पान की पनवाड़ी और बाग बगीचों में अगस्थि
यह बहुत लगाया जाता है। अगस्थि (अगस्ति) हथिया, अगथिया प० १।३८।२ विवरण-इसका वृक्ष सजल प्रदेश में लगभग १० से ३० अगस्ति के पर्यायवाची नाम -
फीट ऊंचाई में बढ़ जाता है। किन्तु इसका जीवनकाल अन्य अगस्त्यः शीघ्रपुष्पः स्यात्, अगस्तिस्तु मुनिद्रुमः ।
वृक्षों की तरह दीर्घ नहीं होता। यदि इसे जल न मिले और शीत व्रणारिदीर्घफलको, वक्रपुष्पः सुरप्रियः ॥
विशेष हो तो बड़ी मुश्किल से २ से ४ फीट तक बढ़कर ही अगस्त्य,शीघ्रपुष्प,अगस्ति,मुनिद्रुम,व्रणारि,दीर्घफलक,
रह जाता है। इसका पेड़ सीधा साफ और श्वेत या धूसर वर्ण वक्रपुष्प तथा सुरप्रिय ये सब अगस्त्य के नाम हैं।
(राज० १०।४६ पृ० ३०६)
का होता है। जब यह पत्र और पुष्पों से लद जाता है तब बहुत अन्य भाषाओं में नाम -
ही सुन्दर दिखाई देता है। इसमें बहुत सी घनी शाखाएं छोटीहि०-अगस्त, अगस्तिया, हथिया, अगथिया। बं०-बक। छोटी पतली पीत हरित वर्ण की तथा कुछ शाखाएं जाड़ी मोटी न०-अगस्ता, हदगा। गु०-अगथियो। क०-अगसेयमरनु, भूरे रंग की होती हैं। यह वृक्ष पक्षियों को बहुत प्रिय होता है। अगचे। ते०-लल्लयविसेचेटु, अनीसे, अविसि। ता०- नाना प्रकार के पक्षी इस पर किलोल किया करते हैं। अगस्ति, हेतियो। गौ०-वकफुल। सिंघ०-कुतुरमुरेग। अं०
पत्र इमली या सहिंजना के पत्र जैसे किन्तु आकार-प्रकार Large flowered Agati (लार्जफ्लावर्ड अगति) ले०-
में उनसे बड़े अण्डाकार लम्बाई में१ से १.५ इंच तक फीके
* Sesbania Grandiflora (सेसबानिया ग्रांडिप्लोरा)।
हरितवर्ण के चिपचिपे से होते हैं। ये स्वाद में कुछ अम्ल और AeschynomeneGrandiflora (एसक्य नोमीनग्रांडी फ्लोरा)।
कसैले होते हैं। ग्रामीण लोग इसके कोमल पत्तों का शाक अगस्त
बनाकर खाते हैं। पुष्प वृक्ष के पत्रकोणों में से पुष्पों को धारण Sesbahia grandi llora
करने वाली श्वेत रोम युक्त २ से ३ इंच तक लम्बी लाल और श्वेत वर्णवाली बाल जैसी शाखाएं नीचे की ओर झुकी हुई निकलती हैं। इस पर २ से ५ तक पुष्प वक्र या चन्द्रकला के समान शुभ्र या लाल वर्ण के बड़े आकार के आते हैं। आयुर्वेद में नीले और पीले पुष्प युक्त अगस्तिया का भी उल्लेख मिलता है। प्रत्येक पुष्प की लम्बाई १.५ से २ इंच, कहीं-कहीं ४ इंच तक भी देखी गई है। वर्षा ऋतु के बाद ये फूल उगते हैं। ये गूदादार तथा मधुरी मादक गंधयुक्त होते हैं। ये अगस्त्योदय तक बने रहते हैं। एक ही वृक्ष पर कई बार श्वेत लाल वर्ण के पुष्प
आते हैं। कई वृक्ष पर केवल श्वेत ही पुष्प तथा कई वृक्ष पर पुण्य
केवल लाल वर्ण के ही पुष्प लगते हैं। लाल पुष्प वाले को लाल अगस्ति कहते हैं।
(धन्व० वनौ० विशे० भाग १ पृ०५१.५२)
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