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जैन आगम वनस्पति कोश
वेत्त
वेत्त (वेत्र) बेंत
वेत्र के पर्यायवाची नाम
वेत्रो वेतो योगिदण्डः, सुदण्डो मृदुपर्वकः । । ४१ ।। वेत्र, वेत, योगिदण्ड, सुदण्ड तथा मृदुपर्वक ये सब बेंत के नाम हैं । (राज० नि० ७/४१ पृ० १६६ )
अन्य भाषाओं में नाम
भ० २१/१८ प० १/४१/१
म०
हि० - वेंत । बं० - वेत्र, वेंत । पं० - बैंत । गु० - नेतर । - मोठा, वेत, थोरवेत । क० - वेतसु । तै० - पीपारूवा । फा० - वेत । अ०-खलाफ । ले० - Calamus Rotang (केलामस
अ० - Cane ( केन)
रोटंग ) ।
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फल
शाख
उत्पत्ति स्थान - यह जलप्रायः भूमि में २ हजार फीट की ऊंचाई तक पाया जाता है ।
विवरण- इसकी लता सघन आरोही तथा कांटेदार होती है। यह कांटों की सहायता से फैलती है । काण्ड चिकना, हरा और कोषमय पत्राधारों से ढंका हुआ रहता है । पत्ते २ से ४ फीट लंबे, पक्षाकार और पत्रदंड कांटों
से
युक्त होते हैं। पत्रक ६ से १२ इंच लंबे, आधे से पौन
इंच चौड़े, रेखाकार भालाकार, नुकीले एवं तीन शिराओं से युक्त होते हैं। पत्रक के किनारे तथा शिरा पर भी कांटे होते हैं । पत्रकोष से चाबुक के सदृश ८ फीट तक लंबी एक रचना Flagellum फ्लॅजेलम् निकली रहती है, जिस पर भी टेढ़े कांटे होते हैं। पुष्प पत्रकोषों के अन्दर एकलिंगी पुष्पों की विदण्डिक मंजरियां पाई जाती हैं। फल प्रायः १/२ इंच लंबा एवं काले, किनारे के वल्कपत्रों से ढका हुआ रहता है । शीतऋतु में फल पक जाते हैं । बेंत की कई जातियां पाई जाती हैं।
(भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ३६२ )
वेय
वेय (वेत) वेद, बेदसादा
प० १/४२/१
वेतः।पुं। वेतस लतायाम् (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १००३) कई लोग वेतस शब्द से बेदसादा, बेदमुश्क आदि मानते हैं।
(धन्व० वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ० १७४)
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( बेद )
SALIX ALBA LINN
सं०- वेतस
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