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पीलापन या किंचित् लाली युक्त होता है ।
(भाव० नि० कर्पूरादिवर्ग० पृ० २३६ )
वीहि
वीहि (व्रीहि) व्रीहि षष्टि धान्य
,
भ० ६ / १२६, २१/६ प० १/४५/१
व्रीहि के पर्यायवाची नाम
अशोचा पाटला व्रीहि, वहिको व्रीहिधान्यकः ।। व्रीहिसंधान्य मुद्दिष्टः, अर्द्धधान्यस्तु व्रीहिकः । । ३० ।। गर्भेपाकणिकः षष्टिः, षष्टिको बलसम्भवः । सुधान्यं पथ्यकारी च, सुपविः प्रज्ञविप्रियः । । ३१ । । अशोचा, पाटला, व्रीहि, व्रीहिक, व्रीहिधान्यक, व्रीहिसंधान्य अर्द्धधान्य, व्रीहिक, गर्भेपाकणिक, षष्टि, षष्टिक, बलसम्भव सुधान्य, पथ्यकारी, सुपवि तथा प्रज्ञविप्रिय ये सब व्रीहि षष्टि धान्य के नाम हैं।
(राज० नि० १६ / ३०, ३१ पृ० ५३६) विवरण- व्रीहि धान्य के लक्षण-जो चावल वर्षा ऋतु में पैदा होते हैं अर्थात् पककर तैयार होते हैं एवं ओखली में छांटने से जो सफेद होते हैं तथा देर में पकते हैं वे व्रीहिधान्य कहलाते हैं । व्रीहि धान्य के भेद - कृष्ण व्रीहि, पाटल, कुक्कुटाण्डक, शालामुख और जतुमुख ये सब व्रीहि धान्य के भेद हैं। इन व्रीहियों में कृष्णव्रीहि सर्वोत्तम होता है।
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वेणु वेणु) बांस
वेणु के पर्यायवाची नाम
(भाव०नि० धान्यवर्ग० पृ० ६३८)
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वेणु
भ० २१/१७
वंशस्त्वक्सारकर्मारत्वचिसारतृणध्वजाः ।।
शतपर्वा यवफलो, वेणुमस्करतेजनाः । । १५३ ।। वंश, त्वक्सार, कर्मार, त्वचिसार, तृणध्वज, शतपर्वा, यवफल, वेणु, मस्कर और तेजन ये सब नाम वांस के हैं। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ३७६) अन्य भाषाओं में नाम
हि० - वांस । गु० - वांस । म० - बांबू । बं० - बाँश ।
जैन आगम : वनस्पति कोश
ते० - बेदरू बोंगा। ता०- - मुंगिल । कोल० - कटंगा । मा० - वांब | सन्ताल०-माट । अ० - कसब । अंo - Bamboo (बांबू) । ले० - Bambusa arundinacea Willd (बांबुसा अरुन्डिनेसिया विल्ड) Fam. Gramineae (ग्रॅमिनी) ।
तना
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पुष्प
उत्पत्ति स्थान - वांस इस देश के प्रायः सब प्रान्तों में उत्पन्न किया जाता है और छोटी-छोटी पहाड़ियों के आस-पास आप ही आप जंगली भी उत्पन्न होता है ।
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पत्र
विवरण- छोटे, बड़े, मोटे, पतले, ठोस और पोले इन भेदों से वांस कई प्रकार का होता है। इसकी ऊंचाई ३० से ४० फीट से १०० फीट तक होती है और मोटाई ३-४ से १२ - १६ इंच तक होती है। इसके पत्ते १ से १. ५ इंच चौड़े और ५ से ६ तक लंबे होते हैं। प्रायः वांस का वृक्ष पुराना होने पर फूलता फलता है और कोई-कोई वांस अवधि के पूर्व ही फूलने फलने लगता है। इसके फूल छोटे-छोटे सफेद होते हैं।
(भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ३७६, ३७७)
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