________________
जैन आगम : वनस्पति कोश
253
है। इसलिए एक स्थान पर लोहि और दूसरे स्थान पर मांसरोहिणी, अतिरुहा, वृत्ता, चर्मकषा, विकसा, लोहिणी शब्द ग्रहण कर रहे हैं। लोहिणी के दो अर्थ हैं। मांसरोही तथा मांसरुहा ये सब रोहिणी के सात नाम हैं। यहां पर एक अर्थ दिया जा रहा है। दूसरा अर्थ आगे दिया एक दूसरे प्रकार की रोहिणी होती है उसे मांसी कहते जा रहा है।
हैं। मांसी, सदामांसी, मांसरोहा, रसायनी, सुलोमा लोहिणी (लोहिनी) श्वेतपुष्पवाली अपराजिता लोमकरणी, रोहिणी तथा मांसरोहिका ये सब मांसी के लोहिनी के पर्यायवाची नाम
नाम हैं।
(राज०नि०१२/१४५,१४६ पृ०४२५,४२६) महाश्वेता श्वेतधामा, श्वेतस्यन्दापराजिता ।।८६७।। अन्य भाषाओं में नामकटभी किणिही ज्ञेया, लोहिनी गिरिकर्णिका। हिo-मांसरोहिणी, रोहण, रोहन, रक्तरोहण टुक । शिरीषपत्रा कालिन्दी, विषघ्नी शतपद्यपि।।६६८।। म०-रोहिणी, मांसरोहिणी, पोटर | बं०-रोहन, रोहिणा। श्वेतपुष्पा वाजिखुरा श्वेतपाटलिपिण्डिका।। बम्बई-रोहन। गु०-रोहिणी। काठि०-रोना। ता०
महाश्वेता, श्वेतधामा, श्वेतस्यन्दा, अपराजिता, कटभी सोमादमम्, सेम्मारसु, सुमी। ते०-सोमीदा। क०-सुम्बी, किणिही, लोहिनी, गिरिकर्णिका, शिरीषपत्रा, कालिन्दी स्वामी मारा। उर्दू०-रोहन । अं०-Red wood tree (रेड विषघ्नी, शतपदी, श्वेतपुष्पा, वाजिखुरा, श्वेतपाटलि, उड ट्री)। ले०-soymnda Febrifuga A.Guss (सोयमिडा पिण्डिका ये पर्यायवाची नाम किणिही के हैं।
फेब्रिफ्यूगा ए.जस)। (कैयदेव नि० ओषधिवर्ग०पृ० १६१,१६२) जन जातियों में ऐसी धारणा है कि ताजे शस्त्रक्षत
पर रोहिणी छाल का रस लगाने से यह श लोहि
करता है। संभवतः मांसरोहिणी संज्ञा का यही आधार है। लोहि ( ) रोहिणी, रोहन, मांसरोहिणी
(वनौषधि निर्देशका पृ०३०१)
उत्पत्ति स्थान-रोहन के वृक्ष भारत के दक्षिण जीवा०१/७३ प०१/४८/१
पश्चिम, मध्य उत्तर भाग, राजस्थान की अरावली पर्वत विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में लोहि शब्द कंदवर्ग की
श्रेणियों, पंजाब, मिर्जापुर की पहाड़ियों, छोटा नागपुर, वनस्पतियों के साथ है। मूल पाठ में लोहि शब्द है और
सीमा प्रान्त आदि के खुश्क जंगलों में अधिक होती है। पाठान्तर में लोहिणी शब्द है। रोहिणी (मांसरोहिणी) कंद
विवरण-यह गुडूच्यादि वर्ग और निम्बादि कुल का है इसलिए यहां लोहिणी शब्द और उसका अर्थ रोहिणी
रोहण का वृक्ष बहुत ऊंचा होता है। किन्तु पथरीले पर्वतों ग्रहण किया जा रहा है।
में २० से ३० फीट की ऊंचाई में देखने में आते हैं ।इसका ___कैयदेव निघंटु में कन्दाः शीर्षक के अन्तर्गत
तना १/२ से १ या २ फीट व्यास में होता है। ये लंबा विदारी, क्षीरविदारी, वज्रकंद, सूरण, वज्रवल्ली
सीधा, तरसा के समान और गोल होता है। इसमें शाखायें (अस्थिसंहार) वाराही, मांसरोहिणी, लक्ष्मण, अलम्बुषा,
छोटी-छोटी कितनी ही निकली हुई होती हैं। पान बहुत मुशली आदि २२ नाम की वनस्पतियों के पर्यायवाची नाम
लंबे, नीम की सलाई के समान, सलाई पर आये हुए तथा उनका गुण धर्म दिया गया है। इनमें मांसरोहिणी
रहते हैं, फूल सूक्ष्म आम के बौर के समान फाल्गुन के भी एक है और उसको कंद माना है।
अंत में आते हैं। फल मृदंगाकृति के सेमन से कुछ छोटे, लोहिणी (रोहिणी) मांस रोहिणी।
भूरे .लाल रंग के होते हैं । ये चातुर्मास के अंत में पकते रोहिणी के पर्यायवाची नाम
हैं। मूल की लकड़ी सफेद या लाल रंग की होती है। मांसरोहिण्यतिरुहा, वृत्ता चर्मकषा च सा।
छाल मोटी लाल रंग की और इसके ऊपर का छिलका विकसा मांसरोही च, ज्ञेया मांसरुहा मुनिः ।।१४५।। भूरे रंग का खड़ बचड़ा होता है। गन्ध कडवी, स्वाद अन्या मांसी सदामांसी, मांसरोहा रसायनी। कषैला और कडवा होता है। शाख की लकड़ी ललाई सुलोमा लोमकरणी, रोहिणी मांसरोहिका ।।१४६ ।। लिये हए रंग की और इसके ऊपर की छाल राख के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org