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जैन आगम : वनस्पति कोश
Portulaca Quadrifida linn (पोटुलेका क्वाड्रीफीडा) Fam. Portulacaceae (पोटुलेकेसी)।
है। इसके पत्ते लम्बे, गोल, नोंकदार, चिकने १.७५ से ५ इंच तक लम्बे कंगूरेदार होते हैं। पत्रदण्ड १/२ इंची। इस वृक्ष की छाल बहुत मोटी और रेशेवाली होती है। पुष्पदंड २ से ४ इंची। फूल पीले रंग के सुगन्धित और सुंदर होते हैं। पुष्पस्त्वक् १/२ इंची। फूल में पुंकेसर करीब १०० के होते हैं। गर्भाशय में ३ विभाग लोमयुक्त होते हैं। फल १/२ इंच लम्बा, १/८ इंच चौड़ा, शंकु के आकार का होता है। फल पकने पर बैंगनी रंग का होता है। इस फल के अंदर एक कठोर गुठली रहती है। उस गुठली में दो-दो बीज रहते हैं। इसकी छाल गेरुए रंग की और बहुत मुलायम होती है। इसकी छाल और पत्तों से रंग निकाला जाता है। लोध्र की छाल ऊपर से सफेद तुरंत टूट जाय ऐसी, और ऊपर खड़े चीर पड़े हुए, तोड़ने से अंदर से सहज लालरंग की और खुशबु वाली होती है। नवम्बर से फरवरी तक फूल आते हैं और मार्च में जून तक फल आते हैं।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०१६८)
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Portulaca quadrifida Linn. (
शनिश्रा)
उत्पत्ति स्थान-छोटी लोणा एक प्रसिद्ध शाक है, जो सब जगह होता है। यह जमीन पर फैला हुआ होता
विवरण-शाखा सूत जैसी पतली तथा सन्धि से मल निकले हए रहते हैं। पत्ते १/५ से १/३ इंच विपरीत अंडाकार या अंडाकार-भालाकार एवं अल्पवृन्त युक्त होते हैं। पष्प पीले होते हैं। यह ललाई लिये हरे रंग की एवं स्वाद में खारी और खट्टी होती है।
(भाव०नि० शाकवर्ग०पृ०६७०)
लोयाणी लोयाणी (लोणिका) छोटीलोणी, नोनीसाग
प०१/४८/६ विमर्श-लोयाणी शब्द में णी और या का व्यत्यय होने से लोणिया शब्द बनता है जिसकी संस्कृत छाया लोणिका बनती है। लोणिका के पर्यायवाची नाम
लोणिकोक्ता बृहच्छोटी, कुटीरस्तु कुटिअरः दुन्दुरःस्याद्गुडीरीकः,पिण्डीपिण्डीतकस्तथा।।५२ ।।
लोणिका बृहच्छोटी, कुटीर, कुटिअर, दुन्दुर, गुडीरीक, पिण्डी, पिण्डीतक ये लोनियां और कुटीर के नाम हैं।
(मदन०नि० शाकवर्ग०७/५२) अन्य भाषाओं के नाम
हि०-छोटीलोणा, नोनीसाग, छोटी लोनिया, जंगली लोनिया। बं०-क्षुद्रेणुनी, वनणुनी। म०-भुई घोल, लहान घोल । गु०-लुणी । क०-गोलि। ते०-पहल कुर | ता०-कोरिल कीरई। अ०-बुल्कतुल्हमका । ले०
लोहि लोहि (लोहिन्) रोहीतक
प०१/४८/१ लोही (इन्) ।पुं। रोहितकवृक्षे।
(वैद्यकशब्द सिन्धु पृ०६२२) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में (१/४८/१) में लोहिशब्द है। जिसका अर्थ रोहीतक (रोहेडा) है। आगे प० १/४८/२ में सस शब्द है। जिसका अर्थ वन रोहेडा है। पाठान्तर में लोहि के शब्द के स्थान पर लोहिणी शब्द
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