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जैन आगम : वनस्पति कोश
सम्बॅक) Fam. Oleaceae (ओलिएसी)।
Ervum Lens Linn (एवम् लेन्स) Fam. Leguminosae उत्पत्ति स्थान-यह भारत में सभी स्थानों पर बागों (लेग्युमिनोसी)। में लगाया मिलता है। अन्य उष्णप्रदेशों में भी यह होता
विवरण-इसका झाडीदार गुल्म होता है। नवीन शाखायें मृदुरोमश होती हैं। पत्ते पतले, विपरीत, ३.८ से ११.५ x २.२ से ६.३ सें.मी. विभिन्न आकार के प्रायः अंडाकार, चिकने तथा ४ से ६ जोड़ी बगल की स्पष्ट शिराओं से युक्त होते हैं। पत्रनाल ३ से ६ मि.मि. लंबा तथा रोमश होता है।
पुष्प अत्यन्त सुगंधित, श्वेत, एकाकी अथवा ३ एक साथ रहते हैं। बाह्यदल १.३ से.मी. लंबा, रोमश एवं ६ से १० मि.मि. ५ से ६ विभागों में रहता है। अन्तर्दल नलिका १ से ३ से.मी. तथा उसके खण्ड नलिका के बराबर होते हैं। स्त्रीकेशर परिपक्व होने पर ६ मि.मि. गोल, काला तथा बाह्यदल से घिरा रहता है।
___ (भाव०नि० पुष्पवर्ग पृ० ४६०)
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मल्लिया गुम्म मल्लियागुम्म (मल्लिकागुल्म) बेला का गुल्म जीवा० ३/५८० ज २/१०
उत्पत्ति स्थान-यह समस्त भारत में शीतऋतु में देखें मल्लिया शब्द।
बोया जाता है।
विवरण-इसका क्षुप १ से २ फीट ऊंचा, सीधा, मसूर
झाडीदार एवं चने की तरह होता है। पत्ते संयुक्त पक्षवत्
एवं अग्र सूत्रसम होता है। पत्रक ४ से ६ जोड़े, अवृन्त, मसूर (मसूर) मसूर
भालाकार एवं छोटे होते हैं। पुष्प सफेद बैंगनी या गुलाबी ___ठा०५/२०६ भ०६/१३०; २१/१५ प० १/४५/१
विभिन्न प्रकार के भेदानुसार होते हैं। फली छोटी १/२ मसूर के पर्यायवाची नाम
इंच लंबी एवं २ बीज युक्त होती है। बीज गोल, किंचित् मसूराः मधुराः सूप्याः, पृथवः पित्तभेषजम् ।।८४// चिपटे तथा भरे रंग के होते हैं। दाल लाल रंग की होती
मसूर, मधुर सूप्य, पृथव, पित्तभेषज ये सब मसूर के पर्याय हैं। (धन्च० नि०६/८४ पृ० २६०)
(भाव०नि० धान्यवर्ग० पृ० ६४७) अन्य भाषाओं में नाम हिo-मसूर, मसूरक, मसूरी। ब०-मसुरि।
महाजाइ म०-मसुर । गु०-मसूर । क०-चणगि। ताo-मिसुर । ते०-मसूर, पप्पु । फा०-बुनोसुर्ख, नेवसुर्ख, विसुक, महाजाइ (महाजाति) वासंती पुष्प लता मरजूनक । अ०-अदस । अंo-Lentil (लेन्टिल)। ले०
भ० २२/५ प० १/३८/३
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