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जैन आगम : वनस्पति कोश
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चीन, तुर्की में उगती है। यहां पंजाब, जंबू और काश्मीर
मरुया में खेती होती है।
मरुया (मरुवक, मरुत्तक) सफेद मरुआ मुलहठी-यह हरितक्यादि वर्ग और शिम्बीकुल का
भ० २१/२१ जीवा० ३/२८३ एक गुल्म बहुवर्षजीवी होता है। मुलेठी का क्षुप ५ से ६
देखें फणिज्जय शब्द। फीट ऊंचा होता है। इसका क्षुप देखने में कसौंदी के समान । इसकी जड़ लंबी, गोल एवं फैली हुई होती है। इसके पत्ते कसौंदी के पान से संकडे और संयुक्त
मल्लिया छोटे-छोटे गोल होते हैं। पत्रदंड के दोनों ओर सामान्तर मल्लिया (मल्लिका) बेला, मोतिया भाव से पत्रिका पक्षाकर ४ से ७ जोड़ें में और अग्रभाग
रा० ३० जीवा० ३/२८३ प० १/३८/२ में एकपत्र होता है। इसका फूल लाल रंग का होता है। मल्लिका के पर्यायवाची नामइसमें छोटी और वारीक फली लगती है। जिसमें २ से मल्लिका शीतभीरुश्च, मदयन्ती प्रमोदनी। ५ तक बीज होते हैं। चुक्रोईड्रग फार्म (जंबूकाश्मीर) में मदनीया गवाक्षी च, भूपद्यष्टपदी तथा।।१२३।। इसकी खेती होती है। ४ वर्ष बाद मूल को खोद लिया मल्लिका, शीतभीरु, मदयन्ती, प्रमोदनी, मदनीया, जाता है परन्तु मूल निकालने के बाद भी कुछ अंश जमीन गवाक्षी, भूपदी, अष्टपदी ये सब मल्लिका के पर्याय हें। में रह जाता है उसमें से नया क्षुप पैदा हो जाता है और
(धन्व०नि० ५/१२३ पृ० २५८) खेत को छा देता है। जड़ पीले रंग की और खुरदरी होती है। इसका स्वाद मीठा, कुछ चरपरा और कड़वा होता है। इसकी गंध अच्छी नहीं होती। इसके मार्च में फूल और अगस्त मास में फली आती है। मुलेठी की मुख्य दो जाति होती है। एक जलजाति देशों में पैदा होने वाली और दूसरी मरुदेश जाति की जमीन पर पैदा होने वाली।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ० ३६६)
मरुआ मरुआ (मरुवक, मरुत्तक) सफेद मरुआ रा० ३०
देखें फणिज्जय शब्द ।
TRG
MPSC) फल
मरुयग मरुयग (मरुत्तक) सफेद मरुआ प० १/४४/३ मरुत्तकः ।पुं। श्वेतमरुवकवृक्षे ।
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ७६७) देखें फणिज्जय शब्द।
RAPA
पुचकाट अन्य भाषाओं में नाम
हि०-मोगरा, मोतिया, बेला। म०-मोगरा। गु०-डोलर, मोगरो। क०-मल्लिगे। ता०-अडुक्कुमल्लि । बं०-मोतिया । ले०-Jasaminum Sambac Ait (जस्मिनम्
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