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जैन आगम : वनस्पति कोश
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मांसल तथा नारंगी वर्ण के स्तम्भक से बना होता है।
भिस जो खाने के काम आता है। फलत्वक में एक स्फोटकारक
_ भिस (विस) कमलकंद
प० १/४६ विषैला रस होता है, जिससे धोबी कपड़ों में निशान लगाने की स्याही बनाते हैं। फल के अंदर की मज्जा स्वादिष्ट
दद्यादालेपनं वैद्यो मृणालं च विसन्वितम् ।।७८ ।।
विस (कमल की जड़) तथा मृणाल (कमल दण्ड होती है तथा वह भी खाने के काम आती है। कुछ लोगों
व खस) को मिलाकर लेप देना चाहिए। में पुष्पित भल्लातक वृक्ष के पास सोने से या पुष्पपराग
(चरक संहिता चिकित्सा स्थान अध्याय २१/७८ पृ० ३२६) की हवा लगाने से शरीर पर सूजन आ जाती है।
धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० १३८ में (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग०पृ०१३६)
इसका अर्थ इस प्रकार है
विसर्प पर मृणाल (कमल नाल) और विस (कमल भल्ली
कंद) इन दोनों का लेप करें। यहां मृणाल से खस भी भल्ली (भल्ली) भिलावा
प० १/४०/३
लेते हैं। भल्ली के पर्यायवाची नामभल्लातके स्मृतोरुष्को, दमनस्तपनोग्निकः ।
भिसमुणाल अरुष्करो वीरतरु भल्ली चाग्निमुखो धनुः ।।४६० ।। भिसमृणाल (विसमृणाल) कमलनाल रंजकः स्फोट हेतुश्च, तथा शोफकरश्च सः।
रा० २६ जीव० ३/२८६ प० १/४६ स्नेहबीजो रक्तफलो, दुर्दो भेदनस्तथा।।४६।। विस के पर्यायवाची नामभल्लातक, अरुष्क, दमन, तपन, अग्निक, अरुष्कर
पद्मनालं मृणालं स्यात्, तथा विसमिति स्मृतम् ।।८ // वीररु, भल्ली, अग्निमुख, धनु, रंजक, स्फोटहेतु, मृणाल और विस ये दो नाम कमल नाल के हैं। शोफकर, स्नेहबीज, रक्तफल, दुर्दप, भेदन ये भिलावा अन्य भाषाओं में नामके संस्कृत नाम हैं। (सोढल १ श्लोक ४६०, ४६१ पृ०४८)
हि०-मुरार, भसींड। म०-भिसें। देखें भल्लाय शब्द।
विमर्श-प्रज्ञापन १/४६ में भिस और भिसमुणाल
ये दो शब्द हैं। दोनों ही कमलनाल के पर्यायवाची नाम भाणी
हैं। फिर भी वाग्भट के टीकाकर अरुणदत्त दोनों में सूक्ष्म भाणी (बाणी) नील कटसरैया
और स्थूल का भेद मानते हैं। दोनों शब्द एक साथ होने
प०१/४६ बाणी |स्त्री। निलझिण्ट्याम् । (वैद्यक निघंटु)
से मृणाल (कमलनाल) का अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ७३२)
विवरण-वाग्भट के टीकाकार अरुणदत्त लिखते विमर्श-भाणी शब्द की छाया बाणी की है। क्योंकि
__ हैं-मृणालं द्विविधं सूक्ष्म स्थूलञ्च, तत्र सूक्ष्म, मृणालं भाणी शब्द वानस्पतिक अर्थ में अभी तक नहीं मिला है। इतरत् विसम्" अथात् सूक्ष्म आर स्थूलभद स मृणाल द हेमचंद्राचार्य प्राकृतव्याकरण (१/२३८) में भिसिणी की
प्रकार का है। सूक्ष्म को मृणाल व स्थूल को विस कहते छाया बिसिनी होती है। वहां भ को ब हुआ है। यहां भी
हैं। टीकाकार यहां विस को सूक्ष्म और मृणाल को स्थूल
पद्म लिखते हैं। और भी कई स्थानों में मतभेद देखा छाया में भ को ब किया गया है। संभव है भाणी शब्द अन्य वनस्पति का वाचक हो।
जाता है। वास्तव में कमल पुष्प की नाल को मृणाल तथा इसमें से निकलने वाले सूक्ष्म तन्तुओं को विस मानना युक्ति संगत लगता है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० १३८)
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