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जैन आगम : वनस्पति कोश
भद्दमुत्था भद्दमुत्था (भद्रमुस्ता) मोथा भ०२३/८ प०१/४८/६ भद्रमुस्ता के पर्यायवाची नाम
मुस्ता भद्रा वारिदाम्भोद मेघा, जीमूतोऽब्दो नीरदोऽधं घनश्च । गाङ्गेयं स्याद् भद्रमुस्ता वराही, गुआ ग्रन्थि भद्रकासी कसेरुः ।।१३८ ।। क्रोडेष्टा कुरुविन्दाख्या सुगंधि ग्रंन्थिला हिमा। वन्या राजकसेरुश्च, कच्छोत्था पश्चविंशतिः/१३६।।
मुस्ता, भद्रा, वारिदा, अम्भोद, मेघा, जीमूत, अब्द, नीरद, अभ्र, घन, गांगेय, भद्रमुस्ता, वराही, गुआ, ग्रन्थि, भद्रकासी, कसेरु, क्रोडेष्टा, कुरुविन्दाख्या, सुगंधि, ग्रन्थिला, हिमा, वन्या, राजकसेरु तथा कच्छोत्था ये सब मुस्ता के पच्चीस नाम हैं।
(राज०नि०७/१३८,१३६ पृ०१६३) अन्य भाषाओं में नाम
हिo-मोथा | बं०--मुता, मुथा । मo-मोथा, भद्रमुष्टि, बिम्बल। गु०-मोथ। कo-कोरनारि। तेल-तुंगमुस्ते। ता०-किलंगु। फाo-मुष्केजमीं। अ०-सोअदंकूफी। अं0-Nut grass (नटग्रास)। ले०-Cyperus rotundus linn (साइपेरस् रोटन्डस् लिन०) Fam. Cyperaceae (साइपेरेंसी)।
कठोर कंद सदृश भौमिक काण्ड से निकलता है। नीचे सूत्राकार अन्तर्भूमिशायी कांड भी प्रायः होते हैं, जिनमें पौन से एक इंच के घेरे में अंडाकार कंद निकले रहते हैं, जो कसेरु के समान ऊपर से काले रंग के और भीतर से लालीयुक्त सफेद होते हैं और इनमें सुगंध आती है। डंडी पतली ६ से २४ इंच तक ऊंची, त्रिकोणाकार तथा पत्तों के बीच से निकली रहती है। पत्ते लम्बे और पतले होते हैं। डंडी के अग्र पर समस्थमूर्धजक्रम में पुष्पवाहक शाखायें निकलती हैं जो छोटे-छोटे अवृन्त काण्डज व्यूहों का संयुक्त व्यूह होती हैं। पुष्पव्यूह का आधार भाग तीन पत्रसदृश कोणपुष्पों से घिरा रहता है। इसके काले-काले कंदों का चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।
(भाव०नि०कर्पूरादिवर्ग० पृ०२४३)
भद्दमोत्था भद्दमोत्था (भद्रमुस्ता) मोथा भ०७/६६ जीवा०१/७३
विमर्श-भगवती ७/६६ में यह शब्द कंदवर्ग के शब्दों के साथ है। मोथा कंद होता है।
देखें भद्दमुत्था शब्द।
भमास भमास ( ) धमासा ०२१/१८ प०१/४१/१
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में भमास शब्द पर्वकवर्ग के अन्तर्गत है। पर्व वनस्पतियों में भमासशब्द नहीं मिलता, धमास शब्द मिलता है। इसलिए यहां धमास शब्द ग्रहण कर रहे हैं। धमासा शब्द हिन्दी, मराठी गुजराती और मारवाड़ी भाषा का है। संस्कृत में धन्वयास आदि शब्द
हैं।
धमासा के संस्कृत नाम
धन्वयासो दुरालम्भा, ताम्रमूली च कच्छुरा।
दुरालभा च दुःस्पर्शा, यासो धन्वासकः२० ।। उत्पत्ति स्थान-मोथा इस देश के सब प्रान्तों में
धन्वयास, दुरालाम्भ ताम्रमूली, कच्छुरा, दुरालभा, बहलता से होता है। यह तृणजातीय वनस्पति बारह ही दस्पर्शा, यास और धन्वयासक ये धन्वयासक के मास पायी जाती है किन्तु बरसात में सर्वत्र देखने में आता पर्यायवाची नाम हैं। (धन्च०नि०१/२० पृ०२१.२२)
अन्य भाषाओं में नामविवरण-इसमें मूलीय पत्रगुच्छ होता है जो एक
हिo-धमासा, हिंगुआ, धमहर। बं०-दुरलभा ।
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