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जैन आगम : वनस्पति कोश
सर्पगन्धा, चीरितपत्रिका, सुगन्धा, नाकुली, सर्पलोचना, निकलता है। रस ग्रंथियां पत्रकोण में उपपान के स्थान गन्धनाकुली, सर्पकंकालिका, सुनन्दा और विषदंष्ट्रिका पर । पुष्प सफेद प्रायः बनफसई आभावाले, (गुलाबी); ३ ये नाकुली के पर्याय हैं।
इंच चौड़े, विभाजित बुरे जैसी रचना में अनियमित । पुष्प (कैयदेव नि० ओषधिवर्ग श्लोक ७७५, ७७६ पृ०१४३) सलाका २ से ५ इंच लम्बी, अनक शाखा युक्त। पुष्पवृन्त अन्य भाषाओं में नाम
छोटा, रवड़ा लाल । पुष्पपत्र पुष्पवृन्त के नीचे तीन कोण हि०-नकुलकंद, नाकुलीकंद, नाई, हरकाई । वाला नोकदार, लगभगआधा इंच लंबा। पुष्पबाह्यकोष चन्द्रा, रास्नाभेद, छोटाचांद | उड़ीसा, बिहार-धनवरुआ चिकना, तेजस्वी लाल, आकुंचित सिरा युक्त १५ इंच धवलवरुआ, सनोचाडो। बं०-नाकली, गन्धरास्ना, लम्बा मोकदार। पुष्पाभ्यन्तरकोष लगभग आधा इंच चन्द्र। म०-करकई, अडई, चद्र। ग०-सर्पगन्धा, लम्बा, कोमलनलिकायुक्तनलिका लगभग पोण से एक अमेलपौदी। आसामी-अरचोन चीता। कन्नड़-गरुड इंच लम्बी, बीच में कुछ फूली हुई। तस्तरी कप आकार पतुला, शिवनाभि। मलय०-चुवन्न एबिल, पोशी। की, पुंकेसर ५, नलिका के भीतर । परागकोष छोटे। ता०-चिबान, अम्पेलपोदी, सौवन्ना, मिलबोरी। बीजाशय खण्ड २ मुक्त या जुड़े हुए, डोडी १-१ कभी ते०-पातालगंधी । बनारस-धनमखा । दरभंगा-पुलक। दो विभाग युक्त, पहले हरी पकने पर बैंगनी, काली, पाव राज०-सर्पगंधा | पश्चिमीघाट-अड़कई । ओ०-पाताल से आधा इंच व्यास की (बडे मटर जितनी बड़ी) होती गरुड। ग्वालियर-नया। फा०-छोटा, चांदा। ले०- है। Rauwolfia serpentina Benth (ौवोल्फिया सर्पेन्टाइना)। फूलने का समय लम्बा है। अप्रैल से नवम्बर तक
उत्पत्ति स्थान-हिमालय की चार हजार फीट की फूल निकलते रहते हैं। मई के उत्तरार्द्ध में फल बनना ऊंचाई तक सर्पगंधा का क्षप मिलता है। पंजाब में यह शुरू हो जाता है। जुलाई से नवम्बर तक फल पकते हैं। हिमालय की तलहटी में शतजल से लेकर यमुना तक एक समय में कुछ पकते हैं और बाकी कच्चे रह जाते गरम और नरम स्थानों में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश हैं। में देहरादून से लेकर गोरखपुर तक ठंडे और छायादार अन्य जातियां-(१) रावुल्फिया केनेस्सन्स (२) स्थानों में, पटना, भागलपुर और विलासपुर में, आसाम रावुल्फिया माइक्रेन्था (३) रावुल्फिया डैन्सीफ्लोरा (४) में कामरूप, नौगांव, उत्तरी कछार, गोलपाड़ा, खासी । रावुल्फिया पेरा कैंसिस् । अब तक इनके अलावा १६ तथा जयंती के पार्वत्य अंचल में, गारो पहाड़ों में, मद्रास जातियां उपलब्ध हुई हैं। इस प्रकार २४ प्रकार की में, पश्चिम घाट के प्रायः सारे जिलों में और आंध्र राज्य सर्पगन्धा की खोज हो चुकी है। में, बंबई में कोंकण, दक्षिण महाराष्ट्र और कन्नड के नमी
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०२८६,२८७) वाले जंगलों में पाया जाता है।
सर्पगन्धा-कुटजादि कुल का सर्पगन्धा का बहुवर्षीयक्षुप सीधा, छोटी खड़ी झाड़ीदार, पानों के गुच्छसह छह से अठारह इंच तक ऊंचा होता है।
फुलिया कहीं-कहीं दो से तीन फुट तक ऊंचा देखने में आता फुसिया (स्पी)
लज्जावंती प०१/४०/५ है। इसका काण्ड स्वाश्रयी होता है। छाल निष्तेजक, विमर्श-फुस शब्द की छाया स्पर्श बनती है। कभी छोटे-छोटे दागयुक्त, पान तीन-चार के गुच्छों में फुसिया शब्द की छाया स्पर्शिका, स्पृशी, स्पर्शा या स्पृशा अण्डाकार या लम्बगोल, ३ से ७ इंच लम्बे, १ से बन सकती है। फुसिया शब्द प्रस्तुत प्रकरण में वल्लीवर्ग २.५ इंच चोड़े, बीच में चौड़े, ऊपर संकड़े, नोंकदार, के अन्तर्गत है। स्पर्श के स्थान पर स्पर्शालज्जा शब्द चिकने, ऊपर तेजस्वी हरे, नीचे हलके हरे। पत्रवन्त । मिलता है, जो कि लता का वाचक है इसलिए यहां लगभग आधा इंच लम्बा । पान तोडने पर दूध जैसा रस स्पर्शलज्जा अर्थ संगत लगता है।
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