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जैन आगम : वनस्पति कोश
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पीपल क०-हिप्पली । ते०-पिप्पलु, पिप्पलि, पिप्लचेट्ट। कर भूमि पर फैलती है। पत्ते २.५ से ३.५ इंच के घेरे ता०तिप्पिली। तु०-इप्पली। मला०-तिप्पलि। में गोलाकार, पान के पत्तों के आकार वाले कोमल होते ब्राह्मी०-पौखीन। गोम०-हिपली। मा०-पीपल। हैं। ऊपर के पत्ते विनाल होते हैं। फलगुच्छ १ से फा०-पिलपिलदराज, फिलफिल दराज, पीपल दराज। १.५ इंच लम्बे और कृष्णाभ होते हैं, जिनमें अत्यन्त अ०-दारफिलफिल, डालफिलफफिल। अंo-Long छोटे-छोटे फल लगे रहते हैं। (भाव०नि०पृ०१५,१६) peper (लॉग पीपर) Dried catkins (ड्राडकॅटकिन्स)। ले०-Piper longum linn (पाइपर लांगम) Chavica
पिप्पलि roxburghii (चविका रॉक्सबघंई) Fam. Piperacea
पिप्पलि (पिप्पलि) पीपल, पीपर, भ०२२/३ (पाइपरेसी)।
देखें पिप्परि शब्द।
पियंगु पियंगु (प्रियङ्गु) प्रियंगु
ओ०६ जीवा०३/५८३
HTRA
SS 01.
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2. ROM
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चियाली PIPER LONGUM LINN.
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उत्पत्ति स्थान-इस देश से गरम प्रान्तों में पूर्व नेपाल से आसाम, खासिया के पहाड़ों पर, बंगाल में पश्चिम की ओर, बम्बई तक तथा दक्षिण की ओर ट्रावनकोर तक पायी जाती है। सीलोन मलाक्का तथा फिलीपाइन द्वीपों में भी यह पाई जाती है।
विवरण-पीपल लता जाति की वनौषधि का फल है। इसकी बेल अन्य लताओं की भांति अधिक विस्तार में नहीं बढती किन्तु थोड़ी ही दूरी में फैलती है। जड़ कुछ मोटी और खड़ी सी होती है। उससे शाखाएं निकल
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पियंग
प्रियंगु के पर्यायवाची नाम
प्रियङ्ग फलिनीकान्ता, लताच महिलाऽवया।।१०१।। गुन्द्रा गन्धफला श्यामा, विष्वक् सेनाङ्गनाप्रिया ।।
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