________________
154
पत्ते तथा डंडियां कालापन युक्त हरे होते हैं, उसको काली तुलसी कहते हैं । तुलसी की अन्य भी कई जातियां पाई जाती हैं। (भाव०नि० पुष्पवर्ग० पृ० ५०६ )
तुवरकविट्ठ
तुवरकविट्ठ (तुवरकपित्थ) कषायरस वाला कपित्थ
उत्त० ३४/१२
विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में तुवरकविट्ठ शब्द कषाय रस की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। कैथ कुछ कच्चा कुछ पका होता है तब उसका रस कषाय होता है।
विवरण- कच्चापका - कसैला, अकण्ठ्य (स्वर को बिगाड़ने वाला) रोचक, कफनाशक, लेखन, रूक्ष, लघु, ग्राही, वातकारक, एवं विषनाशक है ।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३१८)
....
तूवरी
तूवरी (तुवरी) तूर
प० १/३७/३
विमर्श-प्रज्ञापना सूत्र १/३७/३ में तूवरी शब्द है और १/३७/१ में आढइ शब्द है। दोनों शब्द गुच्छवर्ग
के अन्तर्गत हैं और दोनों ही अरहर के वाचक हैं। अरहर का एक भेद तूर होता है। आढइ शब्द का अर्थ अरहर ग्रहण किया है इसलिए यहां तूवरी का अर्थ तूर अर्थ ग्रहण कर रहे हैं।
आढकी तुवरीतुल्या, करवीर भुजा तथा ।
वृत्तबीजा पीतपुष्पा, श्वेता रक्तासिता त्रिधा ।।८२ ।। आढकी, तुवरी, करवीरभुजा, वृत्तबीजा, पीतपुष्पा, ये आढकी के पर्याय हैं। श्वेत रक्त और कृष्ण भेद से आढकी तीन प्रकार की है । ( धन्व०नि० ६ / ८२ पृ० २८६ ) अन्य भाषाओं में नाम
Jain Education International
हि० - अरहड, अडहर, रहर, रहरी रहड़, तूर । बं० - आइरी, अडर । म०- तुरी, तूर । गु० - तुरदाल्य । क० - तोगरि । ते० - कंदुलु । ता० - तोवरै । फा० - शाख़ला । अ० - शाखुल, शांज। अंo - Pigeon Pea (पीजन् पी) । ले० - Caganus Indicus Spreng (केजेनस् इन्डीकस्) । Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी) ।
जैन आगम वनस्पति कोश
उत्पत्ति स्थान- इस देश के प्रायः सब प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है।
विवरण - बीज को ही अरहर कहते हैं। यद्यपि इसके अनेकों भेदोपभेद होते हैं तथापि इसके दो प्रकार अरहर एवं तूर होते हैं। तूर - क्षुप छोटा, पुष्प पीत, फली छोटी एवं २ से ३ बीज युक्त हुआ करती है। यह जल्दी परिपक्व होती है। बीजों से दाल बनाने की दो विधियां प्रचलित हैं। एक में आर्द्र करके बनाते हैं तथा दूसरे में वैसे ही दल कर बनाते हैं। दलकर बनाने में दाल अच्छी होती है तथा जल्दी पकती है किन्तु दलने में टूटने से महंगी पड़ती है । भिंगोकर बनाने में अधिक दाल निकलती है किन्तु यह देर में पकती है। अच्छी दाल मोटी छोटी तथा गोल होती है तथा दूसरी चिपटी, बीच में छोटे गर्तदार पतली तथा बड़ी होती है, जो जल्दी नहीं पकती । (भाव० नि० पृ०६४८)
....
तेंदुअ
ठा० ८/११७/२
तेंदु ( ) तेंदु | इसके लिए तिन्दुक शब्द है। विमर्श - तेंदु शब्द हिन्दी भाषा का है। संस्कृत में
विवरण- फलादिवर्ग एवं अपने ही तिन्दुककुल का यह मध्यम प्रमाण का बहुशाखा प्रशाखा युक्त २५ से ४० फुट तक ऊंचा, सघन सदा हरति पत्रों से आच्छादित वृक्ष जंगलों में बहुत होता है। काण्ड मजबूत व सीधा होता है । काण्ड या मोटी डालियों की लकड़ी कड़ी, काले रंग की, साधारण, सुदृढ़ होती हैं। यह लकड़ी आवनूस के समान चिकनी, काले वर्ण की होने से यह फर्नीचर बनाने के काम आती है । काण्ड की छाल गाढी धूसर या काले रंग की। पत्र हरे, स्निग्ध, आयताकार, दो पंक्तियों में क्रमबद्ध, ५ से ७ इंच लंबे, १.५ २ इंच चौडे चमकीले । पुष्प श्वेत वर्ण के सुगन्धित । फल गोल, लड्डू जैसे कड़े, सिर पर या मुख पर पंचकोण युक्त ढक्कन से लगे हुए । कच्ची दशा में मुरचई रंग के, अति कसैले, पकने पर लालिमा युक्त पीले मधुर होते हैं। इसके भीतर चीकू के समान मधुर, चिकना गूदा रहता है, जो खाया जाता है। इन्हीं फलों को तेंदु कहते हैं। इनके पत्तों का ठेका बीड़ी
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org