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________________ जैन आगम वनस्पति कोश (प्रायोमस) । ले० - Corallocarpus Epigeous (कोरलोकार्पस एपिजियस) Bryonia Epigoea (ब्रायोनियाएपिजिया) । उत्पत्ति स्थान - कडवी नाहीकंद की लता वर्षा ऋतु में जमीन पर या वृक्षों पर बड़ी शीघ्रता से फैलती है । लता में सुतली जैसी दो धार वाली, पतली हरी एवं चमकीली कई शाखायें फूटती हैं। पत्ते तिकोन या पंचकोनयुक्त नोकदार, किनारे तीक्ष्णरोमयुक्त, दोनों ओर खुरदरे और कुछ मोटे होते हैं। पत्र की डंठल १.५ इंच तक लम्बी होती है तथा पत्र ३ इंच तक लम्बा होता है। फूल गुच्छों में हरिताभयुक्त पीले रंग के होते है। फल वृन्तयुक्त आधे से एक इंच तक लम्बा गोलाकार, मोटी छोटी लालमिर्च के समान हरे रंग के होते हैं। इसीलिए राजस्थान की ओर इसे मिर्चियाकंद कहते हैं। प्रत्येक फल पर छोटी चोंच सी निकलती है। मध्यभाग फल का कुछ लाल होता है। फल के गूदे के भीतर नारंगी रंग के नन्हें-नन्हें बीज होते हैं। इसका कंद गाजर जैसा पीताभश्वेत खुरदरा तथा गाढ़ा चिपचिपा रस वाला होता है । यह कंद कुछ अम्लतायुक्त कडुवा होता है। बाद में इसका स्वाद कुछ मीठा हो जाता है। यह शाक वर्ग की ही एक वनौषधि है । आधुनिक शास्त्रानुसार यह कोषातक्यादि वर्ग की बूटी है । यह कड़वी और मीठी दो प्रकार की होती है। मीठी का शाक बनाया जाता है | ( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग०२पृ०७०, ७१) .... णागरुक्ख णागरुक्ख (नाग वृक्ष) सेंड थूहर ठा० ८/११७/२ जीवा० १/७१ विमर्श - निघंटु शब्द कोशों में नागवृक्ष के स्थान पर नागद्रु शब्द मिला है। द्रुशब्द वृक्ष का पर्यायवाची है, इसलिए नागवृक्ष के लिए नागद्रु का अर्थ सेहुंडवृक्ष (सेंड थूहर ) ग्रहण कर रहे हैं। वृक्ष के पर्यायवाची नाम वृक्षोऽगः शिखरी च शाखिफलदावद्रिर्हरिद्रुर्द्रुमो, जीर्णोद्रु टिपी कुठः क्षितिरुहः कारस्करो विष्टरः ।। नन्द्यावर्त्तकरालिको तरु- वसू-पर्णी पुलाक्यंहिपः । Jain Education International 133 सालाऽनोकह-गच्छ-पादप-नगा रूक्षाऽगमौ पुष्पदः, ( अभिधान चिन्तामणौ तिर्यग् काण्डः ४ श्लोक १११४) नागद्रु-पुं० स्नुहीवृक्ष (सेहुण्डवृक्ष) (शालिग्रामौषधशब्द सागर पृ० ६५) नागद्रु के पर्यायवाची नाम स्नुही समन्तदुग्धा च, नागद्रु बहुदुग्धिका । महावृक्षः सुधा वज्रा, शीहुण्डो दण्डवृक्षकः । । स्नुही, समन्तदुग्धा, नागद्रु, बहुदुग्धिका, महावृक्ष, सुधावज्रा, शीहुण्ड, दण्डवृक्षक ये स्नुही के पर्याय हैं । (शा०नि० गुडूच्यादि वर्ग पृ० २२५) अन्य भाषाओं में नाम हि० - थूहर सेहुंड, सेंहुर, सेंड, मुठरिया, सीज, सौझ, थोहर, एटके । बं०- मनसा सिज । म० - नई निवडुंग, मिनगुटथोर । गु०-थोर, कांटलो, कंटालो ते० -आकुजे, मुडु ता० इल्लैकल्लि क० - इल्लैकल्लि । मल० - इल्लैकल्लि फा० - लादनाम् । अ० - जकुमफर्य्यन । अं०-Milk Hedge (मिल्क हेडगे) | Common Dulkhedge (कामन डक हेज) ले० - Euphorbia neriifolia Lin (युफोर्बिआ ) नेराइफोलिआ लिन० ) Fam. Euphorbiaceae (युफोर्बिएसी) । उत्पत्ति स्थान- यह बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिमोत्तर प्रदेश, दक्षिण तथा अन्य प्रान्तों में पाया जाता है । विवरण- इसका झाड़ १० से १५ फीट तक ऊंचा होता है। शाखाएं, सीधी और गूदेदार होती हैं और कांटे चौथाई से आध इंच तक लंबे जोड़े में होते हैं। इन कंटकीभूत उपपत्रों के परस्पर मिलने से कांड पंचकोणीय बन जाता है। लकड़ी कोमल होती है। प्रायः शाखाओं के अंत में चारों ओर से गुच्छाकार पत्ते लगे रहते हैं। वे पत्थरचट्टे के सामान मोटे, ६ से १२ इंच तक लंबे, अभिलट्वाकार होते हैं। अधः पत्रावलि पीताभ होती है। फूल छोटे-छोटे हरापन युक्त पीले और फल आधा इंच तक चौड़े होते हैं। बीज चपटे तथा कोमल लोमयुक्त होते हैं। इसकी शाखाओं और पत्तों से दूध निकलता है। (भाव०नि० गुडूच्यादि वर्ग पृ० ३०८ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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