________________
जैन आगम : वनस्पति कोश
121
(कैयदेव नि० ओषधिवर्ग पृ० २७२, २७३) फ्लोस रेजिनी) Fam. Lythraceae (लिथरेसी) । विमर्श-प्रज्ञापना १/३८/२ में जाई शब्द आया है और प्रस्तुत प्रज्ञापना १/३८/३में जाती शब्द आया है। इसलिए जाती शब्द के लिए ऊपर लिखित तीन अर्थों में मालती का अर्थ तथा उसका भेद गंधमालती ग्रहण कर रहे हैं।
विवरण-पुष्पवर्ग में (जाती, चमेली) एवं स्वर्णजाती का वर्णन आया है। मालती (रतेड) नामक एक अन्य लता होती है जिसे कुछ लोगों ने गंधमालती लिखा है।
(भाव०नि०पृ० २६०) अन्य भाषाओं में नाम
हिO-मालती। बं०-मालती। संथा०-रतेड। ले०-Aganosma Caryophyllata G.Don. (अॅगॅनोस्मा कॅरियोफाइलॅटा जी.डोन) Fam. Apocynaceae (एपोसाइनेसी)।
उत्पत्ति स्थान-यह पूर्व बंगाल, आसाम और उत्पत्ति स्थान-यह बंगाल के नीचे के भाग में,
रत्नागिरी आदि प्रान्तों में उत्पन्न होता है। यह प्रायः मुंगेर, पूर्वी दक्षिण कर्नाटक, गंजाम से रम्पा पहाडी और नदियों के किनारे पहाड़ियों से निर्गम स्थान पर होता नेल्लोर, वेल्लिगोण्डस में पायी जाती है।
है। इसको शोभा के लिए बागों में लगाते भी हैं। विवरण-यह कुटजादि कुल की (Apocyanaceae)
विवरण-इसका वृक्ष बड़ा ३० से ६० फीट तक की एक लता होती है यह बेल हमेशा हरी रहती है। इसकी ऊचा होता है। पत्ते ४ से ८ इंच तक लंबे, कुछ चौड़े, डालियां रुंएदार, पत्ते जीवन्ती के समान लंब गोल, लाल किंचित् अंडाकार, आयताकार-भालाकार और नुकीले सिरे वाले और फूल सफेद रंग के होते हैं। इसके फलों होते हैं। फूल सुंदर २ से ३ इंच के घेरे में बैंगनी युक्त में अत्यन्त खुशबू आती है। गर्मी के दिनों में ये अत्यन्त लाल होते हैं। बाह्यदल श्वेतरज से आवृत होते हैं । फल मनमोहक रहते हैं।
१.२५ से १ इंच बड़े कुछ गोल होते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ० ३८१)
(भाव०नि० वटादि वर्ग० पृ० ५४८)
जावई ) जायची, यावची तितली
जावई ( जाप ।
जारु जारु (जारुल) जरुल भ० २३/१ प० १/४८/२
२ विमर्श-वनस्पति के कोषों में जारु शब्द नहीं मिलता है, जारुल शब्द मिलता है। संभव है यह जारुल ही जारु हो। अन्य भाषाओं में नाम
हिo-जरुल, जारुल, अर्जुन। बं०-जरुल । म०-तामण। ता०-कोहली। तेल-वारगोगु। ले०-LagerstroemeaFlos-reginale Retz (लाजर स्ट्रोमिया
उत्त० ३६/६७ विमर्श-जावई शब्द प्रस्तुत प्रकरण में अनन्त जीवों के अन्तर्गत है। जायची या यावची हिन्दी भाषा का शब्द है। इसे तितलीथूहर भी कहते हैं। अन्य भाषाओं में नाम
हि०-जायची, तितली, यावची, कांगी बं०छागलपुपटी, जायची। प०-कंगी। मद्रा०-तिल्लाकाड।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org