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देखें जवसय शब्द ।
जाई
जाई (जाती) जाई, सफेद पुष्पवाली चमेली
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विमर्श - हिन्दी भाषा और मराठी भाषा में चमेली को जाई कहते हैं ।
जाती के पर्यायवाची नाम
जाती सुरभिगंधा स्यात्, सुमना तु सुरप्रिया । चेतकी सुकुमारा तु, सन्ध्यापुष्पी मनोहरा । । ७४ ।। राजपुत्री मनोज्ञा च, मालती तैलभाविनी । जनेष्टा हृद्यगन्धा च, नामान्यस्याश्चतुर्दश ।।७५।। जाती, सुरभिगंधा, सुमना, सुरप्रिया, चेतकी, सुकुमारा, सन्ध्यापुष्पी, मनोहरा, राजपुत्री, मनोज्ञा, मालती, तैलभावनी, जनेष्टा तथा हृद्यगन्धा ये सब चमेली के चौदह नाम हैं ( राज० नि० १०/७४,७५ पृ० ३११, ३१२ )
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अन्य भाषाओं में नाम
हि० - जाती, जाई, चमेली, चंबेली । म० जाई मालती, चमेली, मोगयी चा भेद जाई । बं० - जाती,
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जैन आगम वनस्पति कोश
चामिल | गु० - चंबेली । क० - जाजि । ता०-पिचि । ते० - जाति गौर० - चमेली, मालती । अ० - यासमीन, यासमून | फा०-यासमन। अं० - Spanis Jasmine (स्पेनिस जेस्मिन) | ले० - Jasminum grandiflorum Linn (जेस्मिनम् ग्रेण्डिफ्लोरम्) | Fam. Oleceae (ओलिएसी)।
उत्पत्ति स्थान - यह भारत में प्रायः सर्वत्र ही बागों में पुष्पों के लिए बोयी जाती है।
विवरण - पुष्पवर्ग एवं पारिजात कुल की इसकी खूब 'फैलने वाली लता होती है। इसका कांड मोटा नहीं होता, किन्तु पतली-पतली शाखायें बहुत लंबी बढ़ जाती हैं। इन्हें यदि सहारा न मिले तो ये भूमि पर ही खूब फैल जाती हैं। ये शाखायें कडी एवं धारीदार पत्र अभिमुख, संयुक्त २ से ५ इंच लंबे, नोंकदार, छोटे-छोटे गोल, अग्रभाग का पत्र कुछ अधिक लंबा । पुष्पवर्षाकाल में, पत्रकोण से या शाखा के अंत में मंजरी में, बाहर से गुलाबी आभायुक्त वर्ण के ५ पंखुडी युक्त, १ से १.५ इंच व्यास के, १/२ से १ इंच लंबे होते हैं। पुष्प दीखने में तो सुंदर नहीं होते किन्तु सुगंध अतिमनोहर एवं दूर तक फैलने वाली होती है।
श्वेत और पीत भेद से इसके दो प्रकार । पीताभ श्वेत पुष्पवाली को कहीं-कहीं जुही भी कहते हैं । चमेली जुही और मालती इन तीनों में बहुत घोटाला हो गया है । इन तीनों के गुणधर्म प्रायः एक समान ही है । ( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ४४ )
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जाउलग
जाउलग (जातुक) हींग जातुकम् क्ली० | हिङ्गौ ( शब्द चंद्रिका) (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ० ४६२ )
विमर्श - जाउलग शब्द का संस्कृत रूप जातुलक, जागुडक, जांगुलक, जाकुलक आदि बनते हैं । जागुड और जांगुल का अर्थ क्रमशः केसर और तोरइ होता है। प्रस्तुत प्रकरण में जाउलग शब्द गुच्छवर्ग में आया है। इसलिए जागुडक शब्द उपयुक्त नहीं। जातुलक शब्द निघंटुओं में नहीं मिलता है। संस्कृत में जातुक शब्द मिलता है जिसका अर्थ होता है हींग हींग के फूल
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