________________
जैन आगम : वनस्पति कोश
111
चोरकः ।पुं। पृक्कायाम् । स्वनामख्यातगंधद्रव्ये ।
चोरा ग्रंथिपर्णस्यैवभेद, भटेउर इति नेपालदेशे, . चोरा (चोरा) शंखिनी
भ०२१/११ गठिवना इति महाराष्ट्रादौ, चौरा इति पार्वतीय चोरा। स्त्री। चोरपुष्याम् । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ४३८) देशादौ प्रसिद्धे। (वैद्यक शब्द सिन्धुः पृ० ४३७) चोरपुष्पी के पर्यायवाची नाम
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण प्रज्ञापना १/४४/३ में शंखिनी नाकुली विश्वा, चोरपुष्पी सुकेशिनी। चोरकशब्द हरित् वर्ग के अन्तर्गत है। असबरग शाक है। बहुफेना बहुरसा, दृढपादा विसर्पिणी।।१४६१।। इसलिए यह अर्थ किया जा रहा है।
यशस्करी वेत्रमूला, यवतिक्ताक्षि पीडिका।। चोरक के पर्यायवाची नाम
शंखिनी, नाकुली, विश्वा, चोरपुष्पी, सुकेशिनी, स्पृक्का लता कोटिवर्षा, मरुन्माला लतामरुत्। बहुफेना बहुरसा, दृढ़पादा, विसर्पिणी, यशस्करी, लङ्कारिका समुद्रान्ता, कुटिला देवपुत्रिका।। वेत्रमूला, यवतिक्ता, अक्षिपीडिका ये शंखिनी के पर्याय हैं। स्पृक्का, लता, कोटिवर्षा, मरुन्माला, लतामरुत्
(कैय० नि० ओषधिवर्ग पृ० ६२२) लङ्कारिका, समुद्रान्ता, कुटिला, देवपुत्रिका (देवपुत्री) अन्य भाषाओं में नाम(देवी, पृक्का, पिशुना, लघु, वधू, लङ्कायिका, लंकापिका हि०-शंखिनी। बं०-यवेची, श्वेत बोना (कालमेघ)। ब्राह्मणी, मनु, मालालिका, मालानी, लघ्वी, पंचगुप्तिरसा । म०-यवोची, टीटवी । को०-शांखवेल्य गु०-शखहेल्य,
समुद्रकान्ता, मरुत्, माला, कोटीवर्षा, लंकोपिका, वर्षा । भगलिंगी, आख्युफुटामाणा। क०-शंखिनी ले०लंकायिका, तस्कर, चोरक, चण्ड, असृक)।
Andrographis paniculata (एण्डोग्राफिस् पेनिक्युलेटा) (शालि०नि० कपूर्रादिवर्ग पृ० ६६, ६७) Bryoniascabrella (ब्रायोनियास्काब्रेला)। अन्य भाषाओं में नाम
_ विवरण-शंखिनी की बेल शिवलिंगी के समान हि०-असवरग अस्परक परी। बं-पिडिशाक। होती है फल भी शिवलिंगी के समान होते हैं। शंखिनी
गगौना, कापुरीशाक। कर्ना०-हिके। के बीज शंख के सदश होते हैं। शिवलिंगी के फल के तैलि०-स्पृक्कुथनेडुद्रव्यम् । उत्-फिरिकिशाक। ऊपर सफेद छींटे होते हैं किन्तु शंखिनी के फल के ऊपर भाव प्रकाश में
छींटे नहीं होते। (शा०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ३२६,३३०) गु०-मखमलीचोधारों । म०-कपुरीमधुरी, कालोतुंबो गावजबान, चोधारा। क०-करितुंबे। ते०-मोगबीराकु
छत्ता ता०-पेथिमसरी। अंo-Malabar catmint (मॅलॅबर
छत्ता (छत्रक) भुइंछत्ता
भ० २३/४ केटमिण्ट)। ले०-Anisomeles Malabarica R.Br. (ऐनिसोमेलिस् मलबारिका र०ब्र०) Fam.labiatae (लेबिएटी)
विमर्श-छत्ता शब्द हिन्दी भाषा का है, संस्कृत में
इसका रूप छत्रक बन सकता है। इसलिए छत्रक छाया उत्पत्ति स्थान-इसका क्षुप अत्यन्तरोमश तथा झाडीदार दक्षिण भारत में होता है।
देकर उसका अर्थ भुइंछत्ता किया जा रहा है। विवरण-यह ४ से ६ फीट ऊंचा रहता है। पत्ते
छत्रक के पर्यायवाची नाममोटे, लंबगोल, कुछ शल्याकृति दन्तुर तथा सवृन्त होते
__ सर्पच्छत्रं भूमिकन्दो, भूमिस्फोटश्च छत्रकः । हैं। पुष्प हलके जामुनी रंग के होते हैं। इसके पत्र सुगंधित
भूकन्दः पृथिवीस्फोटः, शिलीन्ध्र कवकं स्मृतम् ।।१६१० ।। एवं कड़वे होते हैं। स्पृक्का (असबरग) सुगंध द्रव्यों में से
सर्पच्छत्र, भूमिकन्द, भूमिस्फोट, छत्रक. एक प्रकार का शाक ही है तथा जिसे लोक में लंकोर्डकपरी पृथिवीस्फोट, शिलीन्ध्र, कवक ये पर्याय भूकन्द के हैं।
(कैय० नि औषधिवर्ग पृ० ६४३, ६४४) भी कहते हैं। (भाव०नि० कर्पूरादिवर्ग पृ० २६५)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org