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जैन आगम : वनस्पति कोश
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हैं।
अत्यधिक होने से मरुजा कहलाती है। गोपाल (ग्वाले) जालिनी, कर्कशच्छदा, श्वेल, तिक्ता, सुघण्टाली, इसे बहुत खाया करते हैं, अतः गोपाल ककड़ी इसे कहते ज्योत्सना, जाली और घोषक ये पर्याय कोशातकी के हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३१०३२)
(कैय०नि० ओषधिवर्ग पृ० १०५)
अन्य भाषाओं में नामघोसाडई
हि०-तोरई, तरोई, तुरई। बं०-घोषालता, घोसाडई (घोषातकी) श्वेततोरई
झिंगा। म०-दोडका, शिरालें। गु०-तुरिया, घिसोडा, प० /४०/१
तुरया । क०-हीरे । ते०-बीर | ता०-मीर्छ । ले०-Luffa घोषातकी (स्त्री) श्वेतकोशातक्याम् (रत्नमाला)
acutangula Roxb (लूफा एक्यूटेंगूला)। तत्पर्याय-मृदङ्गौ, जालिनी, कृतवेधकः,
___ उत्पत्ति स्थान-तोरई सभी प्रान्तों में रोपण की श्वेतपुष्पा, आकृतिच्छत्रा, ज्योत्स्ना।
जाती है तथा वन्य भी पाई जाती है। (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ० ४०६) विवरण-इसकी लता और पत्ते नेनुआ के समान विमर्श-रत्नमाला में घोषातकी शब्द है और होते हैं। फूल पीले किन्तु पुंकेशर ३ रहते हैं जबकि नेनुआ निघंटुओं में संस्कृत नाम घोषातकी के स्थान पर में ५ रहते हैं। फल ६ से १२ इंच लंबे आधार की तरफ कोशातकी मिलता है।
संकुचित एवं १० धारीदार होते हैं। इसमें कभी-कभी कडवे फल होते हैं। वह वास्तव में जंगली प्रकार नहीं है।
(भाव० नि० शाकवर्ग० पृ०६८५)
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घोसाडिया घोसाडिया (घोषातकी) तोरई
रा० २८ जीवा० ३/२८१ देखें घोसाडई शब्द।
HAPAN
घोसेडिया कुसुम घोसेडिया कुसुम (घोषातकी कुसुम)
तोरई का फूल रा० २८ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में घोसेडिया शब्द पीले रंग की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। इसकी छाया घोषेतिका होनी चाहिए परन्तु अन्यत्र आगमों में घोसाडिया शब्द ही मिलता है और उसकी छाया घोषातकी ही की गई है। इसलिए यहां भी इस शब्द की छाया घोषातकी की जा रही है। देखें घोसाडइ शब्द ।
कोशातकी के पर्यायवाची नाम
श्वेतघोषा कृमिच्छिद्रा, घण्टाली कृतवेधना। मृदंगवत् कोशवती, मृदंगफलिनी तथा ।।५६८ // कोशातकी तु कर्कोटी, जालिनी कर्कशच्छदा।। श्वेलः तिक्ता सुघंटाली, ज्योत्स्ना जाली च घोषकः ।।५६६ ।।
श्वेतघोषा, कृमिच्छिद्रा, घण्टाली, कृतवेधना, मृदंगवत्, कोशवती, मृदंगफलिनी, कोशातकी, कर्कोटी,
चंडी चंडी (चण्डी) लिंगनी, शिवलिंगी
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