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लेश्या-कोश - इस समिति के अन्य प्रकाशन भी मेरे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे।
-नन्दलाल जैन बजरंग नगर (रीवा)
५ फरवरी, २००१ 'पुद्गल कोश' शोधकर्ताओं ने एक अमूल्य ग्रन्थ तैयार किया है। सम्पादक द्वय धन्यवाद के पात्र हैं। जैन दर्शन के विद्यार्थियों के लिए एक अमूल्य निधि है।
-मुनि श्री सुखलालजी इस कोश में पुद्गल का सांगोपांग विवेचन है। कोश अतीव आकर्षक है।
-मुनि श्री जयचंदलालजी
___ लाडणू, २ अगस्त, २००० पुद्गलकोश श्रीचन्दजी चोरड़िया की अपूर्व कृति है। चोरडियाजी की गति अधिक से अधिक कोश के कार्य में लगे। चोरडियाजी बहुत परिश्रम करते हैं । इनका ज्यादा समय इस कार्य में नियोजित हैं। हमें आशा है कि चोरड़ियाजी दीर्घायु हो। वे और भी कोश देते रहेंगे। मैं इनसे लगभग ४० वर्ष से परिचित है। यह उनका पंडितोचित्त कार्य है।
-डा० सत्यरंजन बनर्जी
४ फरवरी, २००० उन्होंने अपने स्वकथ्य में-जैन दर्शन ने श्रमण परम्परा का गौरव बढाया है। उन व्यक्तियों का उल्लेख किया है। वर्तमान शताब्दी में आध्यात्मिक व सामाजिक सभ्यता को उत्कर्षता की ओर ले जाने वाले व अनुवाद करने वालों में श्रीचन्द चोरड़िया, न्यायतीर्थ का नाम भी उल्लेख किया है।
-सम्पादक, छत्रसिंह बच्छावत
धरती के धन्य पुरूष संस्मरणों के वातायन में आचार्य श्री तुलसी ने कहा-तेरापंथी महासभा के पूर्व मन्त्री स्व. मोहनलालजी बांठिया आगमों के गम्भीर अध्येता थे। इस विषय में उनकी तुलना में आने वाले कुछ ही श्रावक हो सकते हैं। बांठियाजी ने जैन भारती में शृङ्खला बद्ध संकलन ( नारकी का ) प्रकाशित करना शुरु किया। इससे पाठकों में आगमों के अध्ययन के प्राप्त थोड़ा भी झुकाव बढता है तो यह बड़ी उपलब्धि हो सकती है।
विज्ञप्ति वर्ष ३ अंक ३० ७ नवम्बर १९६७ से साभार
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