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लेश्या-कोश
५४५ इस कोश की यह विशेषता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर की कुछ मान्यताओं को अलग-शलग तालिका बनाकर दिखाया गया है। सम्पादकों का यह श्रम अभिनन्दनीय है।
प्रस्तावित तीन खण्डों में से यह प्रथम खण्ड है। अन्य दोनों का सम्पादन कार्यकारी है। आशा है शोधकर्ताओं के लिए यह ग्रन्थ अति उपयोगी सिद्ध होगा।
-मुनि श्री राजकरण
जैन भारती
१४ जून १९८१ पं० दलसुख मालवणिया के दो शब्द और डा. ज्योति प्रसाद जैन की भूमिका युक्त इस महानन्थ के प्रस्तावित तीन खण्डों में यह प्रथम खण्ड है। भगवान महावीर की जीवनी सम्बन्धी समस्त पहलुओं के अवतरणों का संग्रह करने में विद्वान् सम्पादकों ने बड़े ही धैर्यपूर्वक श्रुत-समुद्र का अवगाहन कर बहुत ही महत्वपूर्ण भागीरथ प्रयत्न किया है।
इसमें श्वेताम्बर-दिगम्बर और कुछ नेतर ग्रन्थों का परिशीलन किया गया है। लम्बी विषय सूची से यह स्पष्ट होता है कि भगवान महावीर स्वामी के शोधपूर्ण जीवन संकलन में तथ्यों को प्रकाश में लाने के लिए यह नन्थ बहुत ही मूल्यवान सिद्ध होगा।
प्रस्तावना में कल्पसूत्र में संहरण काल को अज्ञात बताया है-तत्त्वतः तो अवधिज्ञान युक्त महावीर के लिए वह अगम्य नहीं हो सकता। लिखा है पर आचारांग सूत्र में "सुहमेणं से काले पन्नत्ते" यह सूक्ष्मकाल, अवविज्ञान के विषय में अगभ्य हो सकता है, परमावधि व सर्वावधि में नहीं है।
-भंवरलाल जैन
कुशल निर्देश
फरवरी १९८१ वर्धमान जीवन कोश द्वितीय खण्ड पर समीक्षा
VARDHAMAN JIVAN-KOS Vol II, ed by Mohanlal Bantbia and Srichand Choraria, Jain Darsan Samiti, Calcutta, 1984. Pages 45+343. Price Rs. 65.00.
This is an age of systematic enquiry and research. So when a scholar undertakes the study of a particular topic, he does not rest
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