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लेश्या-कोश सिद्धान्तों के विषय में ज्यों-ज्यों शोध की प्रवृत्ति बढती जायेगी इस प्रकार के ग्रन्थों का मूल्य बढता जायेगा।
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों अध्यायों में कुछ बातों पर मतभेद है। उनके वाङ्गमय के अध्येताओं के सामने उससे कुछ हैरानी पैदा हो जाती है उदाहरण के रूप में दिगम्बर मान्यता के अनुसार महावीर ने विवाह नहीं किया। शोध कर्ता किस मान्यता को स्वीकार करे और किस मान्यता को अस्वीकार करे।
इस कठिनाई को हल करने का एक ही मार्ग है और वह यह है कि पाठकों को दोनों मान्यताओं से अवगत करा दिया जाये। ____ जो हो, इस तक अन्य कोशों की रचना द्वारा सम्पादकों गे पाठकों का बड़ा उपकार किया है। उन्होंने ज्ञान का सागर प्रस्तुत कर दिया है। अपने पात्र की गहराई के अनुसार हम उसमें से सार ग्रहण कर सकते हैं। सम्पादक तथा प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र हैं।
-सम्पादक, यशपाल जैन
जीवन साहित्य
जुलाई १९८३ जैन दर्शन समिति ( १६-सी, डोवर लेन, कलकत्ता-२६ ) द्वारा श्री श्रीचन्द चोरडिया के सम्पादन में वर्धमान जीवन कोश कृति का प्रकाशन हुआ है। प्रारम्भ में स्वनाम धन्य आदरणीय जैन रत्न स्व० मोहनलालजी बांठिया इस योजना के प्रवर्तक थे। श्री चोरडियाजी के सहयोग में यह ग्रन्थ तैयार हुआ था। भगवान महावीर की जीवनी से सम्बन्धित सामग्री को प्रस्तुत करने वाला यह ग्रन्थ रत्न अत्यन्त उपयोग एवं संग्रहणीय है।
अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन -अध्यक्ष डा० दामोदर शास्त्री
जैन दर्शन विभाग
अक्टूबर १९८२ प्रस्तुत कोश में काफी विस्तार के साथ श्रमण भगवान महावीर के च्यवन पूर्व, च्यवन, गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान प्राप्ति, परिनिर्वाण आदि का विवेचन है।
संपादक द्वय ने यह कोश मूल आगम, आगमेतर ग्रन्थ ( श्वेताम्बर-दिगम्बर ग्रन्थ ) तथा कुछेक जैनेतर ग्रन्थों से तैयार किया है।
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