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पंच परमेष्ठी के केन्द्र स्थान
१- अरिहंत
२- सिद्ध ३--आचार्य
४- उपाध्याय
५ – साधु
लेश्या - कोश
मस्तकस्थान
भृकुटिस्थान
हृदयस्थान
नाभिस्थान
चरण-कमल
आर्त्त - रौद्र ध्यान में बहने वाला व्यक्ति सत्ता और संपत्ति के पीछे दौड़ता है अतः वह अपनी प्रतिष्ठा और गरिमा को कभी सुरक्षित नहीं रख पाता ।
अधिक्रोधी व्यक्ति में अप्रशस्त लेश्या का सद्भाव रहता है क्रोध में डुबी हुई माता द्वारा बच्चे को स्तनपान कराने पर कभी-कभी बच्चे की मृत्यु हो जाने के उदाहरण भी सामने आये हैं । घृणा से आंतों में छाले हो जाते हैं ; दस्त लगने लगते हैं । ईर्ष्या से घाव व मुंह में छाले हो जाते हैं । क्रोध, भय, लोभ आदि के दुर्गुणों के कारण अनेक बार मृत्यु तक हो जाती है । प्रशस्त लेश्याओं के द्वारा अनेक बीमारियों का उपशमन होता है । अधिकतर बीमारियां मानसिक अशुद्धि की उपज है । रंगों के आधार पर प्रशस्त लेश्याओं के ध्यान से अनेक बीमारियों का इलाज देखा जाता है ।
*६६ २३ लेश्या और
गुणस्थान
छल्लेसा जाव सम्मोन्ति ।
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- पंचश्वे० भाग १ । सु ३१
टीका - 'सम्मोन्ति' अविरतसम्यग्दृष्टि तावत् षडपि लेश्या भवंति ।
प्रथम गुणस्थान से चतुर्थ गुणस्थान तक छहों लेश्या होती हैं ।
सम्यक्वदेशविरतिसर्वविरतानां प्रतिपत्तिकालेषु शुभलेश्यात्रयमेव, तदुत्तरकालं तु सर्वा अपि लेश्याः परावर्त्ततेऽपीति ।
- पंचश्वे० भाग १ | सू ३१ । टीका
देशविरति — पंचम गुणस्थान, सर्वविरति छट्ठ गुणस्थान में छहीं लेश्या
होती हैं ।
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