SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ पंच परमेष्ठी के केन्द्र स्थान १- अरिहंत २- सिद्ध ३--आचार्य ४- उपाध्याय ५ – साधु लेश्या - कोश मस्तकस्थान भृकुटिस्थान हृदयस्थान नाभिस्थान चरण-कमल आर्त्त - रौद्र ध्यान में बहने वाला व्यक्ति सत्ता और संपत्ति के पीछे दौड़ता है अतः वह अपनी प्रतिष्ठा और गरिमा को कभी सुरक्षित नहीं रख पाता । अधिक्रोधी व्यक्ति में अप्रशस्त लेश्या का सद्भाव रहता है क्रोध में डुबी हुई माता द्वारा बच्चे को स्तनपान कराने पर कभी-कभी बच्चे की मृत्यु हो जाने के उदाहरण भी सामने आये हैं । घृणा से आंतों में छाले हो जाते हैं ; दस्त लगने लगते हैं । ईर्ष्या से घाव व मुंह में छाले हो जाते हैं । क्रोध, भय, लोभ आदि के दुर्गुणों के कारण अनेक बार मृत्यु तक हो जाती है । प्रशस्त लेश्याओं के द्वारा अनेक बीमारियों का उपशमन होता है । अधिकतर बीमारियां मानसिक अशुद्धि की उपज है । रंगों के आधार पर प्रशस्त लेश्याओं के ध्यान से अनेक बीमारियों का इलाज देखा जाता है । *६६ २३ लेश्या और गुणस्थान छल्लेसा जाव सम्मोन्ति । Jain Education International - पंचश्वे० भाग १ । सु ३१ टीका - 'सम्मोन्ति' अविरतसम्यग्दृष्टि तावत् षडपि लेश्या भवंति । प्रथम गुणस्थान से चतुर्थ गुणस्थान तक छहों लेश्या होती हैं । सम्यक्वदेशविरतिसर्वविरतानां प्रतिपत्तिकालेषु शुभलेश्यात्रयमेव, तदुत्तरकालं तु सर्वा अपि लेश्याः परावर्त्ततेऽपीति । - पंचश्वे० भाग १ | सू ३१ । टीका देशविरति — पंचम गुणस्थान, सर्वविरति छट्ठ गुणस्थान में छहीं लेश्या होती हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy