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________________ लेश्या-कोश लेश्या और जीव लेश्या चोफरसी के अठफरसी छे ? भाव लेश्या अरूपी विमास । भगवती बारमें शतक पंचमुद्देशे, कह्या द्रव्य लेश्या में अठ फास रे ||८०|| -झीणीचरचा ढाल १५ ४६३ भाव लेश्या अरूपी है । द्रव्य लेश्या में आठ स्पर्श बतलाये गये हैं । जाति स्मृति-जाति स्मरण ज्ञान - पूर्व जन्म को स्मृति ( जाति स्मृति ) मति का ही एक विशेष प्रकार है । इससे पिछले नौ समनस्क जीवन की घटनावलिया जानी जा सकती है । पूर्व जन्म में घटित घटना के समान घटना घटने पर वह पूर्व परिचित सी लगती है । ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करने से चित्त की एकाग्रता और शुद्धि होने पर स्मृति उत्पन्न होती है । जाति स्मरण ज्ञान में लेश्या का विशुद्धिकरण होना अत्यन्त आवश्यक है । अप्रशस्त लेश्या में जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है । धर्म शास्त्रियों ने इस लिए कहा है कि किसी के प्रति बुरा विचार मत लाओ, नहीं तो आत्मा का पतन हो जायेगा और अकारण उसके साथ शत्रुता हो जायेगी । मनमें जो भी भाव उठते है, तत्काल उनका ध्यान करो - अतः अप्रशस्त लेश्या को छोड़ने का प्रयत्न कर प्रशस्त लेश्या में अपने चित्त को लगायें । '६६ २२ लेश्या और ज्ञान • १ लेश्या और विभंग ज्ञान (क) ( असोच्चा णं भंते ! ) Xx X अण्णया कयावि सुभेण अज्भवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं x x x विभेगे नामं अण्णाणे समुपज्जइ । -भग० श ६ | उ ३१ । सू ३३ अश्रुत्वा बात तपस्वी के ( मिध्यात्वी का तप ) किसी दिन, शुभ अध्यवसाय, शुभ परिणाम और विशुद्धमान लेश्या के कारण विभंग अज्ञान उत्पन्न होता है । Jain Education International पांच परमेष्ठी के रंगों की प्रभा के ध्यान से प्रत्येक रंग को ज्योतिर्मय देखना है । अपने आराध्य की आकृति, स्वयं की छाया तथा आसपास के वातावरण को हल्के रंग से पुता हुआ देखना है । यदि केन्द्रों को ध्यान में रखा जाए तो बहुत जल्दी मंत्र सिद्ध हो सकता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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