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लेश्या-कोश
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गया है ।
अतः उनका आस्रव पदार्थ में समावेश होता है । अतः उनका आस्रव पदार्थ में समावेश न्याय युक्त है ।
·६६°२० लेम्या और स्पर्श
लेख्या चोफरसी के अठफरसी है ? भाव लेख्या अरूपी विमास । भगवती बारमें शतक पंचमुद्देशे, कह्या द्रव्य लेस्या में अठफास रे ।। —भीणीचरचा ढाल १५ । श्लो ४
भाव लेश्या अरूपी है । भगवती सूत्र, बारहवें शतक के पांचवें उद्देशक १२/११७ द्रव्य लेश्या में अष्टस्पर्श बतलाए कहे गये हैं ।
द्रव्य लेख्या छह अठफरसी छै; भाव लेस्या छे जीव । -झीणीचरचा ढाल १ गा ३ पूर्वार्ध
लेश्याएं छः है— कृष्ण, नील, कापोत, तेजस, पद्म और शुक्ल । सभी द्रव्य लेश्याएं अष्टस्पर्शी - आठ स्पर्श वाली है । भाव लेश्या जीव है अतः वह स्पर्श रहित है ।
एक दूसरी परिभाषा जो प्राचीन आचार्यों ने बहुलता से प्रचलित थी— वह है
"कृष्णादि द्रव्य साचिव्यात्, परिणामो य आत्मनः । 3 स्फटिकस्येव तत्रायं लेश्या शब्द प्रयुज्यते ॥
जिस प्रकार स्फटिक मणि विभिन्न वर्गों के सूत्रों का सान्निध्ध प्राप्त कर उन वर्णों में प्रतिभासित होता है ।
• ६२९ लेश्या और जीव
द्रव्य चक्री जिन नरक मांहि छै, त्यां थी निकल जिन चक्री थाय । ते सुगति मनुष्य नो आऊखो बांधे, भली भाव लेख्या रे मांय रे || ६१|| अशुभ लेश्या सूं तो दुर्गति जावै, ते कह्यो छे पाठ मार । ए शुभ मनुष्य नो आउखो बांधे, ते शुभ भाव-लेस्या विचार रे || ६२|| जोतषी सुधर्म ईसाने तेजू, ते पिण द्रव्य अमंद | ते पिणी एकेन्द्री तिर्यश्च में उपजै, ए अशुभ भाव लेस्या मांहि बंध रे || ६३||
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