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लेश्या-कोश सभी द्रव्यलेश्याएं छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव पदार्थों में अजीव पदार्थ में समाविष्ट होती है।
आधुनिक मनोवैज्ञानिक डाक्टरों का कहना है कि एलर्जी का एक बहुत बड़ा कारण है हमारी मानसिक पसन्द और ना पसन्द । जैन मंत्र साधन विधि के अनुसार सिद्धों का जाप लाल रंग से किया जाता है। सोवियत ध्वनि विशेषज्ञ लोगों का कहना है कि एक रंग दूसरे रंग के साथ आनेवाली विकृतियों की रोकथाम करता है। कुछ रंग ध्वनि निरोधक होते हैं ।
हरा रंग उत्पाद, शांत तथा स्थिर स्वभावक सूचक है । इस रंग को प्रमुखता देनेवाला व्यक्ति प्रकृति में जीने का रसिक स्वाभिमानी तथा दृढ़संकल्पी वाला होता है। यह एक ऐसा रंग है जो व्यक्ति को अनियंत्रित क्रोध, रक्तक्रांति, तथा निरंकुश व्यक्तियों को बचाता है। लेश्या ध्यान में यह एक रामबाण है। मन की आशांति के समय गहरे नीले रंग का ध्यान विशेष सहायक होता है। जो लोग एकांत नीले रंग को पसन्द करते हैं उनके स्वभाव में सभी मानवीय गुणों का अनुराग होता है।
श्वेत रंग पवित्रता का प्रतीक है। काम, क्रोधादि वृत्तियों की कल्मषता को दूर रहने की भावना उत्पन्न करता है । रंग ध्यान से रोग शमन __ आकाश और काल का-इन दोनों का परस्पर जो सम्बन्ध है, वही सम्बन्ध तत्व ( पंचभूत ) और रंग के साथ है। रंग हमारे स्वभाव और चरित्र का निर्माण करता है। जैन मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण विषय लेश्या इस बात को प्रमाणित करता है कि द्रव्यलेश्या अर्थात् जिन रंग तत्त्वों की हमारे शरीर में प्रधानता है, उसी रंग के प्रति मानसिक अभिरूचि पैदा होती है। वही रंगीय अभिरूचि हमारे विचार-जगत और संस्कार-जगत् का सर्जन करती है। कभीकभी शरीराश्रित रंगों से विपरीत भी विचार परिणति होती हैं। (ग) लेश्या और तत्व अनुजोगद्वारे उदैभावमें, छहु लेस्या कही ताम। उत्तराध्ययने सुभ लेस्या नैं, कर्म लेश्या कही स्वाम ॥३१।।
-झीणीचरचा ढाल १ अनुयोगद्वार सूत्र २७५ में छहों लेश्याओं को औदयिक भाव में समाविष्ट किया गया है तथा उत्त राध्ययन ( ३४ । १ ) में शुभ लेश्याओं को भी कर्म लेश्या कहा
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