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लेश्या-कोश ___इसी प्रकार तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या के विषय में जानना चाहिए ।
[ १ कण्हलेस्सा णं भंते ! जीवा किं आयारंभा ? परारंभा ? तदुययारंभा ? अणारंभा ? गोयमा ! अत्थेगइया कण्हलेस्सा जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अणारंभा।
अत्थेगइया कण्हलेस्सा जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अणारंभा ।
से केणणं जाव अणारंभा ? गोयमा ! कण्हलेस्सा जीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजया य असंजया य । तत्थ णं जे ते संजया ते सुहं जोगं पडुच्च नो आयारंभा जाव अणारंभा । असुभं जोगं पडुच्च आयारंभा वि जाव नो अणारंभा।
तत्थ णं जे ते असंजया ते अविरतिं पडुच्च आयारंभा वि जाव नो अणारंभा। से तेण?णं जाव नो अणारभा।]
नीलकापोतलेश्यानां एष एव गमः ।
अर्थात कई एक कृष्णलेशी जीव आत्मारम्भी नहीं है, परारम्भी नहीं है, तदुभयारम्भी नहीं है किन्तु अनारम्भी है। क्योंकि कृष्णलेशी जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-संयत और असंयत । इनमें जो संयत है वे शुभयोग की अपेक्षा आत्मारम्भी, परारम्भी और तदुभमारंभी भी नहीं है, किन्तु अनारम्भी है। वे अशुभयोग की अपेक्षा आत्मारम्भी भी है, परारम्भी भी है, तदुभयारम्भी भी है, किन्तु अनारम्भी नहीं है। जो असंयत है वे अविरति की अपेक्षा से आत्मारम्भी है यावत् अनारम्भी नहीं है ।
इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि कितनेक कृष्णलेशी जीव आत्मारम्भी भी है यावत् कितनेक जीव अनारम्भी भी है। ___ इसी प्रकार नीललेश्या तथा कापोतलेश्या के विषय में जानना चाहिए। [ २ तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा किं आयारंभा जाव अणारंभा ? गोयमा! अत्थेगइया आयारंभा वि जाव नो अणारंभा, अत्थेगइया आयारंभा वि जाव नो अणारंभा।]
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