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लेश्या-कोश पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! x x x ( कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ) ? कण्हलेसा वा जाव सुक्कलेस्सा वा । xxx एवं सोलससु वि जम्मेसु । एवं एत्थ वि एक्कारस उद्देसगा तहेव ।
भग० श ४० । श १ । सू २, ५, ६ । पृ० ६३१-६३२ कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह महायग्मों में ही कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याए होती हैं। प्रथम समय कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह महायुग्मों में ही कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याए होती हैं । इसी प्रकार प्रथम समय यावत् चरम-अचरम समय उद्देशक तक छः लेश्याए होती हैं ऐसा कहना चाहिए।
भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति० ? जहा पढम सन्निसयं तहा नेयव्वं भवसिद्धीयाभिलावेणं ।
-भग० श ४० । श ८ । पृ० ६३३ भवसिद्धिक महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह ही महायुग्मों में कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याए होती हैं। (देखो श ४० । श १)
अभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! x x x ( कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ) ? कण्हलेस्सा वा सुक्कलेस्सा वा। xxx एवं सोलससु वि जुम्मेसु ।
-भग० श ४० । श १५ । पृ० ६३३-६३४ - अभवसिद्धिक महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह ही महायुग्मों में कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्याए होती हैं।
कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति०? तहेव जहा पढमुद्देसओ सन्नीणं । नवरं बंध-वेद-उदइउदीरण-लेस्स-बंधण-सण्ण-कसाय-वेदबंधगा य एयाणि जहा बेईदियाणं। कण्हलेस्साणं वेदो तिविहो, अवेदगा नत्थि । संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइ अंतोमुहुत्तमभहियाई। एवं ठिईए वि । नवरं ठिईए अंतोमुहुत्तमन्भहियाइन
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