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लेश्या-कोश
३१५ '७६ २ सलेशी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय और कर्म प्रकृति का सत्ता-बंधन-वेदन
काविहा गं भंते ! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया। कण्हलेस्सभवसिद्धियपुढविक्काइया णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया य बादरपुढविकाइया य । कण्हलेस्सभवसिद्धियसुहुमपुढविकाइया णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । एवं बायरा वि । एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भाणियव्यो ।
कण्हलेस्सभवसिद्धियअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइया णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउहेसए तहेव जाव वेदेति ।
कइविहा णं भंते ! अनंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा अनंतरोववनगा० जाव वणस्सइकाइया। अनंतरोववन्नगा कण्हलेस्सभवसिद्धियपुढविकाइया णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहासुहुमपुढविकाइया-एवं दुयओ भेदो।
अनंतरोववन्नगकण्हलेस्सभवसिद्धियसुहुम पुढविकाइया णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नताओ ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ अनंतरोववन्नगउद्देसओ तहेव जाव वेदेति । एवं एएणं अभिलावेणं एक्कारस वि उद्देसगा तहेव भाणियव्वा जहा ओहियसए जाव 'अचरिमो' त्ति।
जहा कण्हलेस्सभव सिद्धिएहिं सयं भणियं एवं नीललेन्सभवसिद्धिएहि वि सयं भाणियव्वं । एवं काऊलेस्सभवसिद्धिएहि वि सयं ।
-भग० श ३३ । उ ६ से ८ । पृ० ६१५-१६
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