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लेश्या - कोश
१२९
( पंचिदियतिरिक्खजोणिया ) नवरं लेस्सापरिणामेणं जाव सुक्क
लेस्सा वि ।
( मणुम्सा ) लेस्सापरिणामेणं कण्हलेस्सा वि जाव अलेस्सा वि ।
( वाणमंतरा ) जहा असुरकुमारा ।
( एवं जोइसिया ) नवरं लेस्सापरिणामेणं तेऊलेस्सा |
( वैमाणिया ) नवरं लेम्सापरिणामेणं तेऊलेसा वि, पम्हतेस्सा fव, सुक्कलेस्सा वि ।
- पण ० प १३ । सू ३ । पृ० ४०६-१०
लेश्यापरिणाम से नारकी कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी है । असुरकुमार देव कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी, तेजोलेशी है । इस प्रकार स्तनितकुमार देव तक जानो ।
जैसा नारकी के लेश्यापरिणाम के विषय में कहा -- वैसे ही श्यापरिणाम के विषय में जानो परन्तु उनमें तेजोलेशी भी है । अप्काय, वनस्पतिकाय के विषय में जानो ।
जैसा नारकी के लेश्या परिणाम के विषय में कहा- वैसा ही अनिकायवायुकाय के लेश्या परिणाम के विषय में समभो ।
जैसा नारकी के लेश्या परिणाम के विषय में कहा- वैसा ही द्वीन्द्रिय के विषय में समझो | इस प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के विषय में समझो ।
लेश्यापरिणाम से तिर्यञ्च पचेन्द्रिय कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी होते हैं ।
लेश्यापरिणाम से मनुष्य कृष्णलेशी यावत् अलेशी होते हैं अर्थात् छः लेश्या - वाले भी होते हैं, अलेशी भी होते हैं ।
पृथ्वीकाय के इसी प्रकार
जैसा असुरकुमार देव के लेश्या परिणाम के विषय में कहाव्यंतर देवों के विषय में समझो ।
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- वैसा ही वाण
श्यापरिणाम से ज्योतिष्क देव तेजोलेगी हैं ।
लेश्यापरिणाम से वैमानिक देव – तेजोलेशी, पद्मलेशी, शुक्ललेशी हैं ।
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