________________
लेश्या-कोश
७३ (१) परिणाम, (२) वर्ण, (३) रस, (४) गन्ध, (५) शुद्ध, (६) अप्रशस्त, (७) संक्लिष्ट, (८) उष्ण, (६) गति, (१०) परिणाम ( संक्रमण ), (११) प्रदेश, (१२) अवगाहना, (१३) वर्गणा, (१४) स्थान, (१५) अल्पबहुत्व-इन १५ प्रकार से लेश्या का विवेचन किया गया है। (ख) नामाइ वण्णरसगन्ध, फासपरिणामलक्खणं । ठाणं ठिइ गइ चाउ, लेसाणं तु सुह मे ।।
--उत्त० अ ३४ । गा २ । पृ० ३०५ (१) नाम, (२) वर्ण, (३) रस, (४) गन्ध, (५) स्पर्श, (६) परिणाम, (७) लक्षण, (८) स्थान, (६) स्थिति, (१०) गति, (११) आयु-इन ११ अपेक्षाओं से लेश्या का वर्णन सुनो।
दोनों पाठ मिलाकर निम्नलिखित अपेक्षाओं से लेश्याओं का विवेचन बनता है। १ द्रव्यलेश्या-नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, प्रदेश, अवगाहना,
अल्पबहुत्व । २ भावलेश्या-नाम, शुद्धत्व, प्रशस्तत्व, संक्लिष्टत्व, परिणाम, स्थान, गति,
लक्षण, अल्पबहुत्व । (३) विविध-वर्गणा। इनके सिवाय भी अन्य अपेक्षाओं से लेश्या का विवेचन मिलता है। ( देखो विषय सूची) (ग) णिदेसवण्णपरिणामसंकमो कम्मलक्खणगदी य ।
सामी साहणसंखा खेत्तं फासं तदो कालो ॥४६०।। अंतरभावप्पबहु अहियारा सोलसा हवंति त्ति । लेस्साण साहणट्ठ जहाकम तेहिं वोच्छामि ।।४६१।।
-गोजी० गा ४६०-१ निर्देश, वर्ण, परिणाम, संक्रम, कर्म, लक्षण, गति, स्वामी, साधन, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व इन सोलह अधिकारों द्वारा लेश्या का विवेचन किया गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org