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लेश्या कोश
मूल - कहि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! असुरकुमारा देवा x x x दिव्वाए लेसाए x x x उज्जीवेमाणा पभासेमाणा
।
टीका - दिव्वया लेश्यया - देहवर्णसुन्दरतया दश दिशो उद्यो
तयन्तः - प्रकाशयन्तः ।
दिव्य लेश्या - शरीर का वह वर्ण और सुन्दरता, जिससे दसों दिशाएँ उद्योतित और प्रकाशित होती हों ।
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असुरकुमार आदि देवों के शरीर के विशेषण रूप में दिव्य लेश्या का प्रयोग किया गया है । उनके शरीर का वर्ण और सौन्दर्य इतना दिव्य होता है कि उससे दसों दिशाएं उद्योतित और प्रकाशित होती हैं
।
०४२४ धम्मलेस्सा ( धर्मलेश्या )
तेऊ पहा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेस्साओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइ उववज्जई ||
- उत्त० अ ३४ । गा ५७
जिन लेश्याओं से जीव सुगति को प्राप्त करे उनको धर्मलेश्या कहते हैं । तेजो, पद्म और शुक्ल — ये तीन धर्मलेश्याएं हैं ।
०४.२५ पईवलेस्साओ (प्रदीपलेश्या )
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-भग० श १३ । उ४ । प्र ४४
मूल --- x x x कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए जहणेणं एको वादो वा तिणि वा उक्कोसेणं पईवसहस्सं पलीवेज्जा, से णूणं गोयमा ! ताओ पईवलेस्साओ अण्णमण्णसंबद्धाओ अण्णमण्णपुट्ठाओ जाव अण्णमणघडत्ताए चिट्ठति ? हंता चिट्ठति ।
प्रदीपलेश्या - दीपक की ज्योति |
किसी घर के बहुमध्य भाग में जघन्य एक, दो या तीन ; उत्कृष्ट से सहस्रों दीप प्रज्वलित कर दिये जायें तो उन दीपकों की ज्योति अन्योन्य रूप --- परस्पर में मिलकर रहती है ।
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