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लेश्या-कोश
मूल - महासुको कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं x x x जे देवा णंद णंदलेसं × × × णंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववष्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता ।
नन्दलेश्य - महाशुक्र कल्प के एक विमान विशेष का नाम ।
महाशुक कल्प में कई देवता नन्द आदि १२ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन १२ विमानों में नन्दलेश्य नाम का भी एक विमान है ।
'०४ २२ दव्वलेस्सं ( द्रव्य लेश्या )
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-भग० श १२ । उ ५ । प्र १६ — गोजी० गा ४६३
मूल (भग० ) - कण्ह लेस्साणं भन्ते ! कइ वण्णा ( जाव कइ फासा ) पन्नत्ता ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च पंच वण्णा जाव अट्ठ फासा पन्नत्ता, x x x एवं जाव सुक्कलेस्सा ।
मूल (गोजी ० ) - वण्णोदयेण जणिदो सरीरवण्णो दु दव्वदो लेस्सा | सा सोढा किण्हादी अणेयभेया सभेयेण ||
' (श्वे०) द्रव्य लेश्या - अष्टस्पर्शी पुद्गल विशेष ।
कृष्णादि द्रव्यलेश्याएँ पौद्गलिक होती हैं, अतः इनमें पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध तथा आठ स्पर्श पाये जाते हैं । द्रव्यलेश्या कृष्णादि छः प्रकार की होती है ।
(दिग०) द्रव्य लेश्या - शरीर का वर्ण विशेष |
वर्ण तामकर्म के उदय से होनेवाले शरीर के वर्ण को द्रव्यलेश्या कहते हैं । द्रव्यलेश्या कृष्णादि भेद से छः प्रकार की होती है किन्तु कृष्णादि द्रव्यलेश्याएँ M निज में अनेक प्रकार की होती हैं ।
०४ २३ दिव्वाए लेसाए ( दिव्य लेश्या )
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- पण्ण० प २ । सू १७८
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