________________
(
14
)
इसी प्रकार अन्य सभी शाश्वत भावों के साथ लेश्या का आगे-पीछे का क्रम नहीं है। सब शाश्वत भाव अनादि काल से है, अन्त काल तक रहेंगे।
लेश्या और योग का अविनाभावी सम्बन्ध है। जहाँ लेश्या है; वहाँ योग है; जहाँ योग है, वहाँ लेश्बा है। फिर भी दोनों भिन्न-भिन्न तत्व है । भावतः लेश्या परिणाम तथा योग परिणाम जीव परिणामों में अलग-अलग बतलाये गये हैं।
लेश्या आत्मा-आत्मप्रदेशों में ही परिणमन करती है, अन्यत्र नहीं करती है । इससे पता चलता है कि संसारी आत्मा का लेश्या के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है व वह अनादि काल से चला आ रहा है।
कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या, व शुक्ल लेश्या में विट्टमान' वर्तता हुआ जीव और जीवात्मा एक है, अभिन्न है, दो नहीं है । जब जीवात्मा (पर्यायात्मा) लेश्या परिणामों में वर्तता है तब वह जीव यानि द्रव्यात्मा से भिन्न नहीं है, एक है, अर्थात् वही जीव है, वही जीवात्मा है ।
अस्तु जैन दर्शन समिति स्व० मोहनलालजी बांठिया एवं श्रीचन्द चोरड़िया द्वारा निर्यित विषयों पर कोश प्रकाशन का कार्य कर रही है। इनके द्वारा लेश्या आदि कई कोश प्रकाशित हो चुके हैं।
इस प्रकार जैन दर्शन समिति के द्वारा उनके विषय पर कोश संकलन का कार्य हुआ है। कोशों के सम्बन्ध में देश-विदेश के उच्च कोटि के विद्वानों ने युक्त कंठ से सराहना की है। ____ मैं उन सभी महानुभावों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने हमें इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सहयोग दिया है। ___ मेरे साथी समिति के मन्त्री श्री सुशील कुमार जैन व श्री नवरतनमलजी सुराना का व श्री बनेचन्दजी मालू का इसे ग्रन्थ के प्रकाशन में अभूतपूर्व सहयोग रहा है।
इस संस्था का पावन उद्देश्य जैन दर्शन व भारतीय दर्शन को उजागर करना है जिससे मानव ज्ञान रश्मियों से अपने अज्ञान अन्धकार को मिटा सके ।
कलकत्ता ७ मई २००१
गुलाबमल भण्डारी, अध्यक्ष
जेन दर्शन समिति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org