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दो शब्द
विषय कोश परिकल्पना बड़ी महत्वपूर्ण है । यदि सब विषयों पर कोश नहीं भी तैयार हो सकें तो बीस-तीस प्रधान विषय पर भी कोश के प्रकाशन से जैन दर्शन के अध्येताओं को बहुत बड़ी ही सुविधा रहेगी । इस सम्बन्ध में मेरा सुझाव है कि श्रीचन्द चोरड़िया पण्णवणा सूत्र से ३६ पदों में विवेचित विषयों के कोश तो अवश्य सम्पादन कर दें ।
यद्यपि इस कोश की परिकल्पना काफी विस्तृत है । किन्तु इन संकलनों से विषय को समझने व ग्रहण करने में मेरे विचार से कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी । पाठकों को श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों दृष्टिकोण उपलब्ध हो सकें अतः चोरड़ियाजी से मेरा विनम्र निवेदन है कि दोनो परम्पराओं से संकलन कर विषय प्रतिपादन आधुनिक दशमलव प्रणाली से कोश को सर्वोच्च स्थान दें ।
सम्पादकों ने सम्पूर्ण जैन वाङ् मय को सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति के अनुसार सौ वर्गों में विभाजित किया है ।
इस वर्गीकरण के अध्ययन से यह अनुभव होता है कि यह दूरस्पर्शी है तथा जैन दर्शन व धर्म में ऐसा कोई विरला ही विषय होगा जो इस वर्गीकरण से अधूरा रह जाय या इसके अन्तर्गत नहीं आ सके ।
पर्याय की अपेक्षा जीव अनंत परिणामी है फिर भी श्यादि दस ही परिणामों का उल्लेख है । योग, ध्यान, साथ लेश्या के तुलनात्मक विवेचन दिये गये हैं ।
अस्तु प्रस्तुत कोश एक पठनीय- मननीय ग्रन्थ हुआ है । लेश्याओं को समझने के लिए इसमें यथेष्ट सामग्री है तथा शोधकर्त्ताओं के लिए यह एक अमूल्य कोश होगा । वर्गीकरण की शैली विषय को सहज गम्य बना देती है ।
आगमों में जीव के अध्यवसाय आदि के
लेश्या शाश्वत भाव है । जैसे- लोक- अलोक - लोकान्त- अलोकान्त दृष्टि, ज्ञान कर्म आदि शाश्वत भाव है, वैसे ही लेश्या भी शाश्वत भाव है ।
लोक भूतकाल में था व भविष्य में रहेगा व वर्तमान में है, लेश्या आगे भी है, पीछे भी है— दोनों अनानुपूर्वी है । इसमें आगे पीछे का क्रम नहीं है ।
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